Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 427
________________ पूछना और मैं उत्तर दूंगा। और साल भर बाद कोई प्रश्न ही न बचा, तो मैंने कभी कुछ पूछा नहीं और इन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। यदि तुम पूछना चाहते हो तो अभी पूछ लो! मैं इसी चक्कर में पड़ गया। मुझे इसी तरह इन्होंने धोखा दिया।' बुद्ध ने कहा, 'मैं पक्का रहूंगा अपने वचन पर। यदि तुम पूछते हो, तो मैं उत्तर दूंगा। यदि तुम पूछो ही नहीं, तो मैं क्या कर सकता हं?' एक बीता, मौलुंकपुत ध्यान में उतरता गया, उतरता गया, और- और मौन होता गया-भीतर की बातचीत समाप्त हो गई, भीतर का कोलाहल रुक गया। वह बिलकुल भूल ही गया एक वर्ष की घटना कि एक वर्ष बीत गया। कौन फिक्र करता है? जब प्रश्न ही न रहें, तो कौन फिक्र करता है उत्तरों की? एक दिन अचानक बुद्ध ने पूछा, 'यह अंतिम दिन है वर्ष का। इसी दिन तुम यहां आए थे एक वर्ष पहले। और मैंने वचन दिया था तुम्हें कि एक वर्ष बाद तुम जो पूछोगे, मैं उत्तर देने के लिए तैयार रहूंगा। अब मैं तैयार हूं। क्या तुम तैयार हो?' मौलुंकपुत्त हंसने लगा, और उसने कहा, 'आपने मुझे भी धोखा दिया। वह सारिपुत्त ठीक कहता था। अब कोई प्रश्न न रहा; मैं कोई भी प्रश्न नहीं खोज सकता। जितना ज्यादा मैं भीतर उतरता हूं उतना ज्यादा मैं पाता हूं कि प्रश्न ही नहीं हैं। तो मैं क्या पूछं? मेरे पास पूछने के लिए कुछ भी नहीं है।' असल में, यदि तुम सत्य नहीं हो तो समस्याएं होती हैं और प्रश्न होते हैं। वे तुम्हारे झूठ से पैदा होते हैं-तुम्हारे स्वप्न, तुम्हारी नींद से वे पैदा होते हैं। जब तुम सत्य, प्रामाणिक, मौन, समग्र होते हो-वे तिरोहित हो जाते हैं। मेरी समझ ऐसी है कि मन की एक अवस्था है, जहां केवल प्रश्न होते हैं, और मन की एक अवस्था है, जहां केवल उत्तर होते हैं। और वे कभी साथ-साथ नहीं होते। यदि तुम अभी भी पूछ रहे हो, तो तुम उत्तर नहीं ग्रहण कर सकते। मैं उत्तर दे सकता हूं, लेकिन तुम उसे ले नहीं सकते। यदि तुम्हारे भीतर प्रश्न उठने बंद हो गए हैं, तो कोई जरूरत नहीं है मुझे उत्तर देने की. तुम्हें उत्तर मिल जाता है। किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया जा सकता है। मन की एक ऐसी अवस्था उपलब्ध करनी होती है जहां कोई प्रश्न नहीं उठते। मन की प्रश्नरहित अवस्था ही एकमात्र उत्तर है। यही तो ध्यान की पूरी प्रक्रिया है. प्रश्नों को गिरा देना, भीतर चलती बातचीत को गिरा देना। जब भीतर की बातचीत रुक जाती है, तो एक असीम मौन छा जाता है। उस मौन में हर चीज का उत्तर मिल जाता है, हर चीज सुलझ जाती है-शाब्दिक रूप से नहीं, अस्तित्वगत रूप से सुलझ जाती है। कहीं कोई समस्या नहीं रह जाती है। समस्या विक्षिप्त मन के कारण थी। अब मन चला गया, मन का सारा रोग चला गया-अब प्रश्न नहीं बचे। हर चीज सीधी-साफ है। रहस्य तो है, लेकिन समस्या नहीं है। कोई चीज सुलझी नहीं है, लेकिन कुछ बचा भी नहीं है सुलझाने के लिए। हर चीज एक रहस्य है; एक विस्मय का भाव घेरे

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