Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 422
________________ जाओगे, मिट जाओगे। न केवल तुम पानी हो जाओगे, तुम भाप बन जाओगे, अब तुम दिखाई नहीं पड़ोगे; तुम तिरोहित हो जाओगे। यदि तुम भयभीत हो इस मिटने से, तो तुम सहारा खोजोगे। तुम कोशिश करोगे फिर से जम जाने की, ठोस हो जाने की, ताकि तुम कोई रूप, कोई आकार, कोई नाम पा सको-कोई 'नाम-रूप'। हिंदुओं ने इस संसार को कहा है, नाम-रूप का संसार। तब तुम्हारी एक पहचान होगी, तुम जानोगे कि तुम कौन हो। केवल कुत्ता जानता है कि वह कौन है-हर चीज निश्चित है, तय है। यदि तुम यात्रा पर आगे बढ़ते हो, पथ पर गतिमान होते हो, तो सब धुंधला-धुंधला हो जाता है-पहाड़ पहाड़ नहीं रहते, नदियां नदियां नहीं रहती। बड़ी अस्तव्यस्तता हो जाती है, एक अराजकता हो जाती है। लेकिन स्मरण रहे : केवल अराजकता से ही नाचते सितारे पैदा होते हैं। ध्यान रहे, केवल अराजकता में ही परमात्मा पाया जाता है। फिर तीसरी अवस्था है-वाष्पीभूत होने की, इस तरह तिरोहित हो जाने की कि कोई नामो-निशान भी नहीं बचता। एक पदचिह्न भी पीछे नहीं छूटता। तुम खो जाते हो। तुम्हारा होना 'न–होने' जैसा हो जाता है। और यही वह अवस्था है, जिसे मैं परम अवस्था कहता है परमात्म अवस्था कहता हूं। इसीलिए तुम परमात्मा को नहीं देख सकते। तुम खोजते रहो, खोजते रहो : एक दिन तुम खो जाओगे, और वही ढंग है परमात्मा को पाने का। परमात्मा कहीं मिलेगा नहीं। तुम परमात्मा को कहीं खड़े हुए नहीं पाओगे साक्षात्कार करने के लिए, क्योंकि कौन करेगा साक्षात्कार? यदि तुम अभी भी मौजूद हो, बचे हो साक्षात्कार करने के लिए, तो परमात्मा की कोई संभावना नहीं है। और जब तुम्ही न बचे तो रेगा साक्षात्कार? किसी विषय-वस्तु की भांति परमात्मा का साक्षात्कार नहीं होगा तुमसे। तुम्हारा उससे साक्षात्कार होगा अपने आत्यंतिक केंद्र की भाति। लेकिन वह केवल तभी संभव है जब तुम पिघल जाओ, तुम तरल हो जाओ पानी की भांति, फिर तुम वाष्पीभूत हो जाते हो-तुम आकाश में उड़ते बादल हो जाते हो, जिसका कोई पता नहीं होता, कोई नाम नहीं होता, कोई रूप नहीं होता; एक निर्मुक्त बादल, जिसका कोई ठौर-ठिकाना नहीं होता। यही भय है : क्योंकि यह एक महामृत्यु है। यह है संपूर्ण अतीत के प्रति मरना। जो भी तुम हो, जो भी तुम्हारे पास है सब छोड़ना होता है; सूली पर चढ़ना होता है। मृत्यु से पहले मर जाओ, वही एकमात्र ढंग है परमात्मा होने का। तो इस बीच की अवस्था से भयभीत मत होना; अन्यथा तुम पीछे जा सकते हो। तुम फिर ठोस हो जाओगे बर्फ की भांति। तुम कोई नाम-रूप, पहचान पा लोगे, लेकिन तुम चूक गए। सातवां प्रश्न :

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