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शिथिल हो जाता है। धीरे-धीरे खोल टूटता है और पृथ्वी में खो जाता है। अब बीज अजनबी नहीं है; उसने मां को पा लिया है। और तब अंक फूट पड़ते हैं।
भारत में हमने स्त्री को पृथ्वी-तत्व कहा है और पुरुष को आकाश-तत्व कहा है-पुरुष भटकता रहता है। वह अपने भीतर कुछ ज्यादा सम्हाल नहीं सकता है। और ऐसा रोज होता है : यदि कोई स्त्री किसी पुरुष के प्रेम में पड़ती है तो वह जीवन भर प्रेम कर सकती है। यह उसके लिए बहत आसान है-वह जानती है कि कैसे किसी भाव को गहरे धारण किया जाए और उसके साथ रहा जाए। पुरुष घुमक्कड़ है, भटकता रहता है। अगर स्त्रियां न होती तो संसार में घर न होते-ज्यादा से ज्यादा तंबू होते-क्योंकि पुरुष घुमक्कड़ है। वह सदा एक ही जगह नहीं रहना चाहता। वह ईंट-पत्थर के महल और संगमरमर के महल नहीं बनाता। नहीं; वे बहुत स्थायी चीजें हैं। उसका घुमक्कड़ों का सा तंबू होता, ताकि किसी भी क्षण वह उसे उखाड़ सके, और कहीं और जा सके।
दुनिया में घर न होते, यदि स्त्रियां, न होतीं। घर स्त्रियों के कारण हैं। असल में सारी सभ्यता स्त्रियों के ही कारण है। पुरुष खाख छानता ही रहता, घूमता ही रहता। और अभी भी उसका मन ऐसा री है। वह घर में भी रहता है, तो भी मन भटकता ही रहता है। वह अपने भीतर कुछ सम्हाल नहीं सकता है। गर्भ बनने की उसकी शमता नहीं है।
इसलिए मेरे देखने में आया है कि स्त्री पुरुष की अपेक्षा अधिक सरलता से ध्यान में उतर सकती है। पुरुष के लिए यह कठिन है; उसका मन बहुत कंपता रहता है, उसे नए-नए जालों में उलझा लेता है; सदा दौड़ता रहता है. सदा सोचता रहता है हिमालय जाने की, गोवा जाने की, काबुल जाने की, नेपाल जाने की-कही न कहीं जाने की। स्त्री एक जगह रुक सकती है; वह एक ही स्थान में रह सकती है। कहीं जाने की कोई भीतरी आकांक्षा उसमें नहीं होती।
'और तब मन धारणा के योग्य हो जाता है।'
तब मन गर्भ बनने के योग्य हो जाता है क्योंकि उसी गर्भ से तुममें एक नई अंतस सत्ता का जन्म होगा। तुम्हें स्वयं को जन्म देना है, तुम्हें स्वयं को गर्भ में धारण करना है। एकाग्रता उसी का हिस्सा है। सुंदर है एकाग्रता को समझना। यदि तुम एक ही विचार के साथ ज्यादा देर तक रह सकते हो, तो तुम अपने साथ भी ज्यादा देर तक रहने में सक्षम हो जाते हो। क्योंकि यदि तुम लंबे समय तक स्वयं में घिर नहीं रह सकते तो तुम वस्तुओं द्वारा आकर्षित होते रहोगे : एक कार, फिर कोई दूसरी कार, एक घर, फिर कोई दूसरा घर; एक स्त्री, फिर कोई दूसरी स्त्री, यह पद, फिर कोई और पद। तुम वस्तुओं में भटकते रहोगे। तुम घर वापस न आ पाओगे।
जब कोई चीज तुम्हारे चित्त को भटकाती नहीं, केवल तभी लौटना संभव होता है। जिस मन में गहन धैर्य है-मां की भांति-जो प्रतीक्षा कर सकता है, स्थिर रह सकता है, केवल वही मन जान सकता है अपनी भगवत्ता को।