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स्वीकार कर लो बीमारी को, तो दुख मिट जाता है। तब तुम जानते हो कि परमात्मा की यही मर्जी है; जरूर कुछ राज होगा इस में इसकी जरूरत होगी तुम्हारे विकास के लिए।
ऐसा ही सूली पर जीसस के साथ हुआ सूली लगने के एक क्षण पहले पूरा मनुष्य-चित उनके अंतस में उभर आया। उन्होंने आकाश की तरफ देखा और कहा, 'यह क्या हो रहा है? यह तू क्या दिखला रहा है? तूने मुझे अकेला क्यों छोड़ दिया है?'
यह मनुष्य का मन है। जीसस सुंदर हैं। वे मनुष्य हैं, वे परमात्मा हैं, दोनों हैं - मनुष्यता की सारी कमजोरियां उनमें हैं और परमात्मा की संपूर्ण पराकाष्ठा उनमें है. वे एक मिलन बिंदु हैं, जहां सेतु खो जाता है और मंजिल प्रकट हो जाती है, वह अंतिम बिंदु जहां सेतु खोता है। वे क्रोध में थे। शिकायत से भरे थे। वे कह रहे थे, 'तूने मुझे निराश किया।'
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इस अंतिम घड़ी में हर कोई इंतजार कर रहा था कि कोई चमत्कार होगा जीसस भी गहरे में जरूर किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे होंगे कि सूली गायब हो जाएगी, फरिश्ते नीचे उतरेंगे और सारा संसार जान जाएगा कि वे ही हैं प्रभु के इकलौते बेटे अहंकार कहता है, तूने क्यों मुझे धोखा दिया? तू मुझे यह क्या दिखला रहा है? तेरा इकलौता बेटा सूली पर चढ़ाया जा रहा है तू कहां है? उस घड़ी में, जरूर एक संदेह उनके मन में आया होगा ।
और मैं कहता हूं, सुंदर है यह बात यह बताती है कि जीसस मनुष्य के पुत्र और परमात्मा के पुत्र दोनों हैं। और यही है जीसस का सौंदर्य और उनका आकर्षण । मनुष्य जाति का इतना बड़ा हिस्सा ईसाई क्यों हो गया है?
यदि तुम बुद्ध को देखो, तो वे बस परमात्मा मालूम पड़ते हैं; मनुष्यों की कोई कमजोरी नहीं है उनमें । यदि तुम महावीर को देखो, तो वे शिखर मालूम पड़ते हैं, गौरीशंकर, परम महिमावान। यदि तुम कृष्ण को देखो, तो तुम एक भी चीज ऐसी नहीं पा सकते जो तुम में संदेह पैदा करे। लेकिन क्राइस्टकमजोर, कोमल, कंपित तमाम आशंकाएं, अनिश्चितताएं, संदेह साथ लिए हैं; वह सारा अंधकार साथ है जिसकी ओर मनुष्य का मन प्रवृत्त होता है और फिर एक अचानक विस्फोट होता है और उसके बाद वे मनुष्य नहीं रह जाते।
जीसस ही थे; सारी आशंकाएं उठ खड़ी हुईस्वाभाविक, बिलकुल स्वाभाविक थी बात, वैसा ही क्या कर रहा हूं? परमात्मा ने नहीं छोड़ा है मुझे, मैं
अंतिम घड़ी तक भी वे मेरी और जोसेफ के पुत्र स्वभावतः। मैं उनके विरुद्ध कुछ नहीं कह रहा हूं होना चाहिए। लेकिन फिर वे सम्हल गए : 'मैं यह ही उसे छोड़े दे रहा हूं। मेरी अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई हैं। बिजली की काँध की तरह अचानक उन्हें पूरी बात समझ में आ गई, 'मैं अपने अहंकार को पकड़ रहा हूं। मैं मांग कर रहा हूं समझने की। मैं हूं कौन? और क्यों संपूर्ण अस्तित्व मेरी फिक्र करे?"