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विधि एक तरकीब है। जब तुम विधि मांगते हो तो तुम कोई बहाना ढूंढ रहे हो ताकि तुम स्थगित कर सको, क्योंकि विधि को तो पहले पूरा करना होगा।
संसार में दो विचारधाराएं रही हैं। एक विचारधारा कहती है बुद्धत्व अचानक होता है; दूसरी विचारधारा कहती है : बुद्धत्व क्रमिक होता है। जो कहते हैं कि बुद्धत्व अचानक होता है, उनकी कभी नहीं सुनी ज्यादा लोगों ने। उनके ज्यादा शिष्य नहीं होते। क्योंकि कैसे तुम इन लोगों के साथ हो सकते हो? वे कहते हैं कि यदि तुम तैयार हो तो बुद्धत्व बिलकुल अभी घट सकता है।
लोग हमेशा दूसरे मार्ग का, क्रमिक मार्ग का अनुसरण करते रहे हैं। क्योंकि क्रमिक मार्ग के साथ तुम्हारे पास पर्याप्त स्थान होता है, पर्याप्त समय होता है स्थगित करने के लिए। कोई इमरजेंसी नहीं होती और न ही कोई जल्दबाजी होती है। वह कोई अभी और यहां का सवाल नहीं है। कल ! कल सब ठीक हो जाएगा; और दूसरा जीवन, अगला जीवन.. तुम इसी तरह और और आगे टालते रहते हो।
गुरु तैयार था साथ ले जाने के लिए, लेकिन कोई तैयार न था जाने के लिए। और तुम मुझ से पूछते हो, 'ऐसा कैसे है कि मैं अभी भी भटका हुआ हूं?' तुम जानते हो। यदि मैं तुम से कहूं कि बिलकुल अभी संभावना है - तुम छलांग लगा सकते हो अपने भटकाव के बाहर - तो तुम तुरंत मुझ से पूछोगे कि कैसे ? तुम विधि के विषय में पूछोगे ।
यह ऐसे ही है जैसे तुम्हारे घर में आग लगी हो और कोई तुम से कहे, 'बाहर निकलो, घर में आग लगी है! तुम जल जाओगे ।' यदि सच में ही तुम देखते हो कि घर में आग लगी है, यदि लपटें दिखाई पड़ती हैं तुमको, तो तुम नहीं पूछोगे, 'कैसे?' क्या तुम पूछोगे कि कैसे बाहर आऊं? तुम छलांग लगा कर बाहर आ जाओगे। तुम बालकनी से छलांग लगा दोगे, तुम खिड़की से छलांग लगा दोगे, तुम कहीं न कहीं से भाग निकलोगे - तुम ढूंढ ही लोगे कोई रास्ता । क्योंकि फिर सवाल ठीक रास्ता ढूंढने का नहीं रह जाता - कोई भी रास्ता ठीक हो जाता है। किसी शिष्टाचार का सवाल नहीं रह जाता, , कि तुम्हें मुख्य द्वार से ही जाना है जब घर में आग लगी होती है, तो तुम खिड़की से छलांग लगा देते हो। तुम जोखम उठा लेते हो अपने जीवन का, क्योंकि थोड़ी देर और रूके घर में और तुम जल जाओगे | जल मरने की बजाय बेहतर है तीसरी मंजिल से छलांग लगा देना और जीवन जीने के लिए अपंग हो जाना। तुम बाहर कूद जाओगे ।
लेकिन यदि तुम कहते हो, 'ही, मैं जानता हूं कि घर में आग लगी है, लेकिन मैं राय लूंगा शास्त्रों की और मैं पूछूंगा गुरुओं से और मैं खोजूंगा बाहर आने का कोई रास्ता', तो इससे क्या पता चलता है? इससे यही पता चलता है कि तुम्हें इसका पता ही नहीं है कि घर में आग लगी है तुमने मान ली है किसी की बात कि घर में आग लगी है, लेकिन अपने भीतर तुम जानते नहीं कि आग लगी है। तुम घर में आराम से रह रहे हो, आग तुम्हारा अपना अनुभव नहीं है।