Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 413
________________ तो भोगने दो उन्हें दुख तुम कृपा करके केवल अपने बारे में निर्णय करो वह भी बहुत है वह भी आसान नहीं है। क्यों तुम दुख भोग रहे हो? क्योंकि तुम 'हो होना ही दुख है; न होना दुख के बाहर हो जाना है। अहंकार दुखी होता है। संपूर्ण जगत एक विराट लीला है; सुंदर लीला है। एक अदभुत उत्सव चल रहा है— क्षण-क्षण ऊंचे से ऊंचे शिखरों को छू रहा है। तुम दुख भोग रहे हो क्योंकि तुम उसमें सम्मिलित नहीं हो। अहंकार कभी भी हिस्सा नहीं बनना चाहता समय का अहंकार अलग होने का प्रयत्न करता है। अहंकार प्रयत्न करता है अपनी ही योजनाओं के लिए, अपनी ही धारणाओं के लिए, अपने ही लक्ष्यों के लिए। इसीलिए तुम दुख पा रहे हो। यदि तुम समग्र का अंग हो जाओ, तो कहीं कोई दुख नहीं रह जाता। अचानक तुम धारा के साथ बहने लगते हो। तुम अब धारा के विपरीत जाने का प्रयास नहीं करते। तुम अब तैरते भी नहीं, क्योंकि तैरने में भी प्रयास होता है। तुम तो बस धारा के साथ बहते हो. जहां भी वह ले जाए, वही तुम्हारा लक्ष्य है। तुमने निजी लक्ष्य गिरा दिए हैं, तुमने स्वीकार कर ली है समय की नियति । तब तुम सरलता से जीते हो, सरलता से मरते हो। कहीं कोई संघर्ष नहीं होता, कोई प्रतिरोध नहीं होता। प्रतिरोध ही दुख है - और तुम समय के विरुद्ध नहीं जीत सकते तो जब भी तुम प्रतिरोध करते हो, तुम दुखी होते हो। असफलता से आता है दुख और तब तुम असहाय और निराश अनुभव करते हो और हर कहीं तुम्हें ऐसा ही लगता है जैसी कि एक कहावत है. 'मैन प्रपोजेज, गॉड डिस्पोजेज' - मनुष्य इरादा करता है, परमात्मा असफल कर देता है। तुम इससे ज्यादा नासमझी की बात नहीं ढूंढ सकते। परमात्मा कभी नहीं डिस्पोज करता कुछ, लेकिन जैसे ही तुम इरादा करते हो, तुम अपने लिए मुसीबत खड़ी कर लेते हो, क्योंकि सब इरादे निजी होते हैं। इसका अर्थ है कि गंगा बंगाल की खाड़ी में नहीं गिरना चाहती, बल्कि अरब सागर गे गिरना चाहती है! उसे बंगाल की खाड़ी में ही गिरना होगा, समग्र की मर्जी पहले से ही तय है। सब गंगा इरादा करती है, 'नहीं, मैं अरब सागर में गिरना चाहूंगी।' और जब वह सफल नहीं होती पश्चिम की ओर बहने में और उसे अनुभव होता है कि सारे प्रयत्न व्यर्थ हैं और वह पूरब की तरफ ही बह रही है, तो मन में विचार उठ खड़ा होता है कि मैन प्रपोजेज, गॉड डिसगेजेज । - परमात्मा क्यों चिंता करे डिस्पोज करने की? परमात्मा कभी डिस्पोज नहीं करता। लेकिन जिस क्षण तुम इरादा बनाते हो, तुमने असफलता की संभावना निर्मित कर दी होती है। लक्ष्यविहीन जीने की कोशिश करो और फिर देखो सारा दुख मिट जाता है बिना अहंकार के जीने की कोशिश करो, और कहीं कोई दुख नहीं रह जाता। दुख एक दृष्टिकोण है; वह कोई वास्तविकता नहीं है। तुम बीमार पड़ते हो, तुम तुरंत बीमारी से लड़ना शुरू कर देते हो; दुख पैदा हो जाता है। यदि तुम

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