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और जब तुम किसी चीज के विरुद्ध संकल्प करते हो, तो तुम दो हिस्सों में बंट जाते हो - तुम अपनें से ही लड़ने लगते हो। यदि तुम कहते हो, मैं स्त्रियों में कोई रस न लूंगा तो तुम ऐसा क्यों कह रहे हो? यदि तुम्हें सच में ही रस नहीं है तो खतम हुई बात उसे कहने में सार क्या है? क्यों तुम प्रतिज्ञा करने, व्रत लेने जाते हो किसी समारोह में भीड़ में, मंदिर में, किसी धर्मगुरु के सामने? मतलब क्या है? यदि अब तुम्हें कोई रस नहीं है, तो बात खतम हो गई क्यों तमाशा बनाना इसका? क्यों ढिंढोरा पीटना ?
नहीं, बात कुछ और है तुम्हारे लिए अभी बात खतम नहीं हुई है। असल में, तुम और भी आकर्षित हो लेकिन तुम निराश भी हो जब भी तुम संबंध में उतरे, निराशा हाथ लगी तो निराशा भी है और आकर्षण भी है - दोनों बातें हैं, यही तकलीफ है। अब तुम कोई सहारा खोज रहे हो जहां तुम इसे छोड़ सको; तुम समाज खोजते हो। यदि तुम भीड़ के सामने स्त्री के प्रति आकर्षण को छोड़ने की कसम खा लेते हो, तो तुम्हारा अहंकार कहेगा, 'अब उस दिशा में जाना ठीक नहीं', क्योंकि सारा समाज जानता है कि तुमने ब्रह्मचर्य का व्रत लिया है। अब यह बात तुम्हारे अहंकार के खिलाफ जाती है; अब तुम्हें लड़ना पड़ता है इसके लिए।
और किसके साथ लड़ रहे हो तुम? तुम्हारी अपनी ही कामवासना से! तुम्हारा संकल्प तुम्हारी अपनी कामवासना से लड़ रहा है। यह ऐसे ही है जैसे तुम्हारा बायां हाथ तुम्हारे दाएं हाथ से लड़ रहा हो। यह मूढ़ता है; यह नासमझी है। तुम कभी जीत नहीं सकते ।
तो कैसे छूटे कोई? तुम समझ से छोड़ते हो, तुम अनुभव से छोड़ते हो, तुम पक कर छोड़ते हों-किसी प्रतिज्ञा से नहीं । यदि तुम कोई चीज छोड़ना चाहते हो, तो उसे पूरा-पूरा जीओं । भयभीत मत होओ और घबराओ मत। उसके गहरे में उतरो, ताकि तुम समझ सको। एक बार बात समझ में आ जाती है, तो उसे बिना किसी प्रयास के छोड़ा जा सकता है। यदि प्रयास आ जाता है, संकल्प आ जाता है, तो तुम मुश्किल में पड़ोगे जबरदस्ती कुछ भी मत करो प्रयास से कुछ भी मत करो। संकल्पपूर्वक कुछ भी मत करो संकल्प ही सब उलझन खड़ी होती है।
केवल थोड़ी सी समझ की जरूरत है कि जीवन एक पाठशाला है जिससे गुजरना जरूरी है। और जल्दी मत करना। यदि अभी भी तुम्हें लगता है कि धन के लिए इच्छा शेष है, तो बेहतर है कि प्रार्थना में मत उलझो। जाओ, और इकट्ठा करो धन, और खतम करो बात बात नासमझी की है, इसलिए यदि तुम में समझ है, तो तुम जल्दी मुक्त हो जाओगे। यदि तुम में समझ की थोड़ी कमी है, तो तुम थोड़ा ज्यादा समय लोगे अनुभव से समझ आएगी ।
अनुभव ही एकमात्र उपाय है; और दूसरा कोई सरल उपाय नहीं है। इसमें थोड़ा समय लग सकता है, लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता मनुष्य असहाय है और सब कुछ छोड़ा जा सकता है। असल में
यह कहना कि छोड़ा जा सकता है ठीक नहीं है. वह अपने आप ही छूट जाता है।
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