Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 408
________________ 12-मैं यहां सिखाने के लिए नहीं आया हू, बल्कि तुम्हें हंसाने के लिए आया हूं। हंसो, और समर्पण घटित होगा और किसी आश्वासन की अब कोई जरूरत नहीं है।' अपने पुराने आश्वासन को क्या आप उपरोक्त ढंग से बदलना चाहेंगे? पहला प्रश्न: आपने कहा मनुष्य एक सेतु है- पशु और परमात्मा के बीच। तो हम इस सेतु पर कहां है? तम सेतु पर नहीं हो, तुम्हीं सेतु हो। इस बात को ठीक से समझ लेना है। यदि तुम सोचते हो कि तुम सेतु पर हो, तो तुम पूरी बात चूक गए-यह अहंकार ही है जो पूरी बात की गलत व्याख्या कर रहा है। तुम सेतु हो। तुम्हें अपने पार जाना है, अपना अतिक्रमण करना है। तुम, जैसे तुम अभी हो, सेतु हो। तुम्हें अपने को पीछे छोड़ देना है; तुम्हें अपने पार जाना है। यदि तुम इसे ठीक से समझ लो, तो बात बड़ी स्पष्ट हो जाती है. यदि तुम बहुत सघनता से हो, तो तुम पशु हो जाओगे, तो भी सेतु तिरोहित हो जाता है। यदि अहंकार बहुत ठोस हो जाए, तो भी तुम सेतु नहीं रहते, सेतु खो जाता है और तुम पशु हो जाते हो। यदि तुम बिलकुल शून्य हो जाओ तो भी सेतु खो जाता है, तुम परमात्मा हो जाते हो। यदि केवल अहंकार बचा है, तो तुम कुत्ते हो, अहंकार कुता है। यदि तुम पूर्णतया तिरोहित हो गएहो, तो पीछे छूट गया परम मौन ही परमात्मा है। वह शून्यता, वह खालीपन, वह खाली आकाश-अनंत, असीम-उसे ही बुद्ध ने 'निर्वाण' कहा है। निर्वाण का अर्थ है. जब तुम्हारा 'होना' समाप्त हो गया। निर्वाण' शब्द का ही अर्थ होता है : दीए की ज्योति का खो जाना-ज्योति खो गई है; विराट अंधकार है, कहीं कोई प्रकाश नहीं। जब अहंकार की ज्योति खो जाती है-तुम्हारी सीमाएं खो जाती हैं, अब तुम कहीं नहीं खोज सकते स्वयं को-तब तुम परमात्मा हो जाते हो। इन दो ध्रुवों-अहंकार और निरहंकार-इनके बीच है सेतु। वह सेतु तुम हो। इस पर निर्भर करता है कि तुम में कितना अहंकार है यदि बहुत अहंकार है तो तुम पशु की ओर प्रवृत हो रहे हो; यदि अहंकार बहुत सघन नहीं है तो तुम परमात्मा की ओर झुक रहे हो। एक रस्सी तनी है पशु और परमात्मा के बीच-लेकिन तुम्ही हो रस्सी। इसलिए मत पूछो कि तुम सेतु पर कहां हो, क्योंकि अत अहंकार ही पूछ रहा है। बस यह समझने की कोशिश करो कि तुम्हीं सेतु हो। उसका अतिक्रमण करना है, उससे गुजर जाना है; तुम्हें अपने पार चले जाना है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431