Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 398
________________ तुम्हें आराम करना होगा थोड़े दिन। जरूरी नहीं कि बीमारी का चला जाना स्वास्थ्य का मिलना हो। स्वास्थ्य एक विधायक घटना है; बीमारी एक नकारात्मक घटना है। ऐसा संभव है कि तुम किसी चिकित्सक के पास जाओ और वह कहे कि तुम्हें कोई बीमारी नहीं है, लेकिन उसका यह अर्थ नहीं है कि तुम स्वस्थ हो। तुम कह सकते हो, 'मैं स्वस्थ अनुभव नहीं करता। मैं अपने में जीवंतता अनुभव नहीं करता। मैं जीवन का कोई उत्साह अनुभव नहीं करता स्वयं में, मुझे नहीं लगता कि मैं जीवित हूं।' डाक्टर केवल बीमारी के विषय में कुछ कह सकता है; वह स्वास्थ्य के विषय में कुछ नहीं कह सकता। उसके पास यह पता करने का कोई उपाय नहीं है कि तुम स्वस्थ हो या नहीं। डाक्टर तुम्हें ऐसा सर्टिफिकेट नहीं दे सकता कि तुम स्वस्थ हो; वह तुम्हें केवल यही सर्टिफिकेट दे सकता है कि तुम बीमार नहीं हो। लेकिन जरूरी नहीं है कि बीमार न होना स्वस्थ होना ही हो। निश्चित ही बीमार न होना स्वस्थ होने की मूलभूत शर्त है-यदि तुम बीमार हो, तो तुम स्वस्थ नहीं हो सकते। लेकिन यदि तुम बीमार नहीं हो, तो जरूरी नहीं है कि तुम स्वस्थ हो। स्वास्थ्य एक विधायक बात है। ऐसा कई लोगों के साथ होता है। कोई व्यक्ति-बूढ़ा, बीमार, जीवन से थका-हारा-जीवन के प्रति तृष्णा खो देता है, जिसे बुद्ध तन्हा कहते हैं। उसे कुछ रस नहीं रहता जीवन में। तुम उसका इलाज कर सकते हो-जहां तक औषधि का संबंध है, तुम निरोग होने में उसकी मदद कर सकते हो, वह बीमार नहीं है। लेकिन तुम फिर भी देखते हो : वह बीमार नहीं है, लेकिन वह स्वस्थ भी नहीं है। जीने की चाह मिट गई होती है। बीमारी न रही; अस्पताल राजी है उसे घर भेजने के लिए लेकिन उसकी कोई इच्छा ही नहीं है जीने की। वह स्वस्थ नहीं होगा; वह मर जाएगा। कोई उसकी मदद कर सकता। स्वस्थ होना एक विधायक घटना है, बीमार होना एक नकारात्मक घटना है। पतंजलि कहते हैं. अब कोई आवरण न रहा। इसका यह अर्थ नहीं है कि तुमने जान लिया प्रकाश को-तीन चरण अभी और शेष हैं। धीरे-धीरे तुम्हें अपने अंतस-चक्षुओं को तैयार करना होगा-उस प्रकाश को अनुभव करने के लिए जानने के लिए, आत्मसात करने के लिए। कभी-कभी इस तैयारी में वर्षों लग जाते हैं। 'फिर उस आवरण का विसर्जन हो जाता है, जो प्रकाश को ढंके हुए है।' तो मैं उन सब व्याख्याकारों से सहमत नहीं हैं जो कहते हैं कि अंतप्रकाश पा लिया जाता है-यह अर्थ नहीं है। अब कोई बाधा नहीं रहती, अवरोध मिट जाता है, लेकिन दूरी अभी भी होती है। तुम्हें थोड़ा और चलना होगा, अब पहले से अधिक ध्यानपूर्वक चलना होगा, क्योंकि तुम भी वही गलती कर सकते हो; तुम सोच सकते हो, अब सब मिल गया, अवरोध टूट गया है, आवरण हट गया है। अब मैं वापस घर लौट आया। लेकिन तब तुम मंजिल पर पहुंचने के पहले ही रुक गए।

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