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इतनी जल्दी में हो? क्या हुआ है? तुम्हारी आंखें देखती रहती हैं, तुम्हारे कान सुनते रहते हैं, लेकिन तुम वहां नहीं होते-तुम्हारे घर में आग लगी है, तुम अब यहां नहीं हो।
यदि बाद में तुम से पूछा जाए 'क्या तुम्हें याद है कि तुम से किसने पूछा था, कहां जा रहे हो तुम? क्यों इतनी जल्दी में हो?' तो तुम याद नहीं कर पाओगे। तुमने देखा था उस आदमी को, तुमने सुना था जो उसने कहा, लेकिन तुम वहां नहीं थे। कान अपने आप नहीं सुन सकते। आंखें अपने आप नहीं देख सकतीं। तुम्हारी मौजूदगी चाहिए।
तुम खेल के मैदान में हो, फुटबाल, हाँकी या वॉलीबाल या कुछ और खेल खेल रहे हो। जब खेल अपने चरम शिखर पर होता है, तब तुम्हारे पैर में चोट लग जाती है; खून बहने लगता है। लेकिन तुम इतने डूबे होते हो खेल में कि तुम्हें होश नहीं होता। चोट लगी है, लेकिन तुम मौजूद नहीं हो अनुभव करने के लिए। आधे घंटे बाद खेल खतम होता है; अचानक तुम्हारा ध्यान जाता है पैर की तरफ-खून बह रहा है। अब दर्द होता है। आधा घंटा खून बहता रहा, लेकिन कोई दर्द न था क्योंकि तुम वहां नहीं
थे।
इसे गहरे में समझ लेना है इंद्रियां अपने आप में नपुंसक है-जब तक कि तुम सहयोग नहीं देते। यही तो योग की संभवना है यदि तुम सहयोग नहीं देते, इंद्रियां बंद हो जाती हैं। यदि तुम सहयोग नहीं देते, तो वापस लौटना शुरू हो जाता है। यदि तुम सहयोग नहीं देते, प्रत्याहार शुरू हो जाता है। जो वर्षों से रोज कई घंटे शांत बैठ कर ध्यान कर रहे हैं, यही तो वे कर रहे हैं-वे उनके और उनकी इंद्रियों के बीच के सहयोग को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। जब ऊर्जा बाहर देखने में, सुनने में, छूने में व्यस्त नहीं होती तो ऊर्जा भीतर की ओर मुड़ने लगती है। वही 'प्रत्याहार' है : स्रोत की ओर लौट पड़ना, उस स्थान की ओर लौट पड़ना जहां से तुम आए हो, केंद्र की ओर लौट पड़ना। अब तुम परिधि की ओर नहीं जा रहे होते।
'प्रत्याहार' केवल शुरुआत है। अंत होगा 'समाधि' में। प्रत्याहार' तो केवल प्रारंभ है ऊर्जा के घर की ओर लौट पड़ने का।'समाधि' तब है जब तम घर पहंच गए, घर आ गए। यम, नियम, आसन, प्राणायाम-ये चारों तैयारी हैं प्रत्याहार के लिए, पांचवें चरण के लिए। और प्रत्याहार प्रारंभ है, मोड़ है; समाधि है अंत।
'फिर उस आवरण का विसर्जन हो जाता है, जो प्रकाश को ढंके हुए है।'
अंतिम सूत्र प्राणायाम के विषय में था। प्राणायाम ब्रह्मांड के साथ लयबद्धता पाने की विधि है, लेकिन फिर भी तुम बाहर रहते हो। तुम ऐसे ढंग से, ऐसी लय से श्वास लेना आरंभ कर देते हो कि तुम्हारा संपूर्ण अस्तित्व के साथ तालमेल बैठ जाता है। तब तुम समग्र के साथ संघर्ष नहीं कर रहे होते, तुमने समर्पण कर दिया होता है। तुम अब शत्रु न रहे समग्र के; तुम प्रेमी बन चुके हो।