Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 380
________________ तो कृष्णमूर्ति कोई नई बात नहीं कह रहे हैं। यही सारे बुद्ध पुरुषों का अनुभव है। लेकिन ध्यान रहे, कोई अनुभव तभी तुम्हारा अनुभव बन सकता है, जब तुमने उसे जीया हो। कोई और उसे दे नहीं सकता है तुमको, वह उधार नहीं पाया जा सकता है। यदि तुम अभी भी बचकाने हो और तुम्हें लगता है कि तुम्हें अनुभवों की जरूरत है, तो बेहतर है उन्हें योग-साधना द्वारा पाना। अंततः तो उन्हें भी छोड़ देना पड़ता है। लेकिन यदि तुम्हें एल एस डी और प्राणायाम के बीच चुनना हो, तो प्राणायाम को चुनना बेहतर है। तुम कम निर्भर होओगे और तुम ज्यादा सक्षम होओगे पार जाने में, क्योंकि तब तुम सजगता नहीं खोओगे। एल एस डी में सजगता बिलकुल खो जाएगी। हमेशा श्रेष्ठ को चुनना। जब भी संभव हो, और तुम चुनना ही चाहते हो, तो श्रेष्ठ को चुनना। एक क्षण आएगा जब तुम कुछ चुनना नहीं चाहोगे-तब आती है चुनावरहितता। छठवां प्रश्न : मैं सेल्फ-कांशसनेस-जिसे कि आप रोग कहते है-और सेल्फ-अवेयरनेस सेल्फ-रिमेंबरिग साक्षी की अनुभूति में भेद नहीं कर पा रहा हूं। ,सेल्फ-कांशसनेस एक रोग है और सेल्फ-अवेयरनेस स्वास्थ्य है। तो भेद क्या है, क्योंकि शब्द तो एक जैसे ही मालूम पड़ते हैं? शब्द एक जैसे लग सकते हैं, लेकिन जब मैं उनका उपयोग करता हूं या पतंजलि उनका उपयोग करते हैं, तो हमारा अर्थ एक ही नहीं होता। सेल्फ-काशंसनेस में जोर है 'सेल्फ' पर, अहं पर। सेल्फअवेयरनेस में जोर है अवेरनेस पर, सजगता पर। तुम दोनों के लिए एक ही शब्द सेल्फ-काशंसनेस का उपयोग क्यों करते हो। यदि जोर 'सेल्फ' पर है, तो वह रोग है। यदि जोर 'कांशसनेस' पर है, तो वह स्वास्थय है, सूक्ष्म है, लेकिन बहुत बड़ा है।' सेल्फ-काशंसनेस एक रोग है क्योंकि तुम निरंतर अपने बारे में सोचते रहते हो-कि लोग मेरे विषय में क्या सोच रहे हैं? वे मुझे क्या मान रहे हैं? उनकी क्या राय है? वे मुझे पसंद करते हैं या नहीं? वे मुझे स्वीकार करते हैं या नहीं? वे मुझे प्रेम करते हैं या नहीं? हमेशा 'मुझे', 'मैं', यही अहंकार केंद्र पर रहता है। यह एक रोग है। अहंकार सब से बड़ा रोग है।

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