Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 379
________________ नहीं हो जाते, जब तक तुम उस जगह नहीं आ जाते जहां केवल साक्षी बचता है और कोई अनुभव नहीं होता अनुभव करने के लिए, केवल अनुभव करने वाला बचता है-तब तक तुमने धर्म के जगत में प्रवेश नहीं किया है। तो कृष्णमूर्ति ठीक कहते हैं। लेकिन जो लोग उनको सुन रहे हैं, वे गलत समझ रहे हैं। उनको सुनने वाले सोचते हैं कि सारे अनुभव व्यर्थ हैं। निश्चित ही अंततः तुम्हें छोड़ देना है उन्हें, लेकिन इससे पहले कि तुम उन्हें छोड़ सको, तुम्हें उन्हें अनुभव करना होगा। वे सीढ़ी की भांति हैं सीढ़ी को छोड़ना पड़ता है, लेकिन पहले ऊपर चढ़ना भी पड़ता है। केवल तभी छोड़ा जा सकता है उसे, जब कोई उसे पार कर लेता है। सारे अनुभव बचकाने हैं, लेकिन परिपक्व होने के लिए तुम्हें उनसे गुजरना पड़ता है। सच्चा धार्मिक अनुभव, अनुभव होता ही नहीं। धार्मिक अनुभव सामान्य अनुभव की तरह नहीं होता है। वह केवल साक्षी होना है, जहां परिचित-अपरिचित, शेय- अज्ञेय सब तिरोहित हो जाता है। केवल साक्षी, केवल शुद्ध चैतन्य बचता है। उस शुद्धता में कोई 'अनुभव' की अशुद्धि नहीं होती-न तुम जीसस को देखते हो, न तुम बुदध को देखते हो, न तुम कृष्ण को देखते हो। इसीलिए झेन गुरु कहते हैं, 'यदि तुम्हें बुद्ध कहीं मिल जाएं मार्ग पर, तो उन्हें तुरंत मार डालना।' बुद्ध के अनुयायी ही कहते हैं, 'यदि तुम्हें बुद्ध, मिल जाए कहीं मार्ग पर, तो उन्हें तुरंत मार डालना!' बड़ी साहस की बात है! क्यों? क्योंकि बुद्ध इतने महिमावान हैं कि तुम स्वप्न के प्रलोभन में पड़ सकते हो। और फिर तुम आंखें बंद किए बुद्ध को देखते हुए और कृष्ण को बांसुरी बजाते देखते हुए अपने सपनों में खोए रह सकते हो। तुम शायद बहुत धार्मिक सपना देख रहे हो, लेकिन फिर भी वह सपना ही है, सत्य नहीं है। सत्य है तुम्हारा चैतन्य। बाकी हर चीज का अतिक्रमण करना है। यदि तुम इसे याद रख सको, तो तुम्हें सभी अनुभवों से गुजरना है , लेकिन तुम्हें उनके पार जाना है। लेकिन यदि तुम्हारा अनुभवों में बहुत ज्यादा रस है, जैसा कि प्रत्येक व्यक्ति को है-वह विकास का हिस्सा है तो मादक द्रव्यों की अपेक्षा योग-साधना को चुनना बेहतर है। वे ज्यादा सूक्ष्म हैं; वे ज्यादा परिष्कृत हैं। तुम्हें पता होना चाहिए कि भारत सभी मादक द्रव्यों पर प्रयोग कर चुका है। अमरीका तो बिलकुल नया-नया है इन चीजों की दुनिया में। ऋग्वेद के सोमरस से लेकर गांजे तक, भारत ने सब पर प्रयोग किया है और पाया है कि यह केवल समय गंवाना है। तो भारत ने फिर योग-साधना पर प्रयोग किए। फिर, बहुत बार, बुद्ध-महावीर जैसे लोग उस अवस्था तक पहुंचे जहां उन्होंने पाया कि योग-साधनाएं भी व्यर्थ हैं; उन्हें भी छोड़ देना पड़ता है।

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