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मुल्ला ने कहा, 'इसमें एक गणित है। पहाड़ पर मेरा एक बंगला है और एक बुढ़िया, बड़ी ही बदसूरत स्त्री उस बंगले की देख-भाल करती है। वही मेरी कसौटी है : जब वह बदसूरत स्त्री मुझे खूबसूरत दिखाई देने लगती है, तब मैं भाग खड़ा होता है। तो कभी आठ दिन के बाद, कभी दस दिन के बाद.। वह बहुत बदसूरत और भयंकर है। सोचा भी नहीं जा सकता कि वह संदर लग सकती है। लेकिन जब मैं उसके बारे में सोचने लगता है और वह मेरे सपनों में आने लगती है और मुझे लगने लगता है वह सुंदर है, तो मैं समझ लेता हूं कि अब वापस घर जाने का समय आ गया है; वरना खतरा है। इसीलिए कुछ पक्का नहीं रहता। यदि मैं स्वस्थ होता हूं तो यह बात जल्दी अनुभव में आ जाती हैसात दिन के भीतर ही। यदि मैं स्वस्थ नहीं होता, तो दो हफ्ते लगते हैं। यह रासायनिक तत्वों पर निर्भर करता है।
सारे अनुभव रासायनिक हैं। लेकिन एक भेद समझ लेना है। दो ढंग हैं। एक ढंग है रासायनिक पदार्थों को बाहर से शामिल कर लेने का इंजेक्शन वारा, धूम्रपान दवारा, खाने-पीने से। वे चीजें बाहर से आती हैं; वे बह्म कल्पित चीजें हैं। यही तो मादक द्रव्य के आदी तमाम लोग संसार भर में कर रहे हैं। दूसरा ढंग है उपवास या श्वास द्वारा शरीर को बदलने का। यही पूरब के सभी योगी करते रहे हैं। वे दोनों एक ही मार्ग पर हैं; अं गोड़ा है। अंतर यही है कि मादक द्रव्य लेने वाले लोग बाहर से मादक द्रव्य लेते हैं, वे जबरदस्ती कुछ आरोपित करते हैं शरीर के जैविक-रसायन में, और योगी बिना कुछ बाहर से डाले अपने शरीर का ही संतुलन बदलने का प्रयास करते हैं। लेकिन जहां तक मेरा संबंध है, दोनों एक समान हैं।
लेकिन यदि तम्हें अनभवों में रस है, तो मैं तुमसे योगियों का मार्ग चनने को कहंगा, तम ज्यादा स्वतंत्र रहोगे। और उस ढंग से तुम कभी भी किसी व्यसन के आदी न होओगे। और उस ढंग से तुम्हारा शरीर अपनी शुद्धता, अपना स्वाभाविक संतुलन कायम रखेगा। और उस ढंग से कम से कम, तुम कानून के प्रति अपराधी नहीं होओगे-किसी पुलिस, किसी अदालत की कोई संभावना नहीं है। और उस ढंग से तुम आसानी से बाहर आ सकते हो-यह सबसे महत्वपूर्ण बात है।
यदि तुम शरीर में बाहर से रासायनिक तत्व डालते हो, तो तुम उन्हें छोड़ नहीं सकते। छोड़ना रोज
और-और कठिन होता जाएगा। असल में तुम और-और निर्भर होते जाओगे। इतने निर्भर हो जाओगे कि तुम जीवन की पुलक, जीवन का पूरा आकर्षण खो दोगे, और वह मादक द्रव्य का अनुभव ही तुम्हारा पूरा जीवन बन जाएगा, जीवन का पूरा केंद्र हो जाएगा।
यदि तुम योग के मार्ग पर चलते हो, शरीर के रसायन में आए आंतरिक परिवर्तनों द्वारा बढ़ते हो, तो तुम कभी निर्भर नहीं होओगे, और तुम हमेशा उनके पार जाने में सक्षम रहोगे। क्योंकि धर्म का मूल तत्व ही है अनुभवों के पार जाना। चाहे तुम सुंदर रंग अनुभव करते हो.. .एल एस डी द्वारा निर्मित सतरंगे इंद्रधनुष-या तुम योग-साधनाओं द्वारा स्वर्ग अनुभव करते हों-मौलिक रूप से कोई अंतर नहीं है। असल में जब तुक तुम सभी अनुभवों के पार नहीं हो जाते, सभी विषयगत अनुभवों के पार