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साक्षी होने का मतलब भाव-शून्य होना नहीं है। असल में यदि तुम भाव-शून्य हो तो फिर तुम साक्षी नहीं रह गए; तुम उदासीन हो गए। तुम देख नहीं रहे हो। और तुम भलीभांति जानते हो कि या तो तुम ठंडे हो सकते हो या तुम गरम हो सकते हो। शीतलता ठीक मध्य में होती है। शीतलता न तो गरम होती है और न ठंडी, वह इन दोनों के बीच का मध्यबिंदु है। तुम सजग हो, लेकिन उत्तेजित नहीं हो। तुम ध्यानपूर्वक देख रहे हो, उदासीन नहीं हो, लेकिन तुम उससे उद्वेलित नहीं होते।
कठिन है बात, क्योंकि तुम दो ही अनुभूतियों को जानते हो-ठंडी और गरम। तुम तीसरी अनुभूति को बिलकुल नहीं जानते हो, क्योंकि तुम एक अति से दूसरी अति में डोलते रहते हो। या तो तुम घृणा करते हो किसी से या प्रेम करते हो। करुणा. तुम नहीं जानते कि वह क्या है। करुणा एक शब्द मात्र है, एक अर्थहीन शब्द मालूम पड़ता है। वह शीतल शब्द है।
अगर तुम बुद्ध के पास आते हो, तो वे तुम्हारा स्वागत करेंगे, लेकिन वह स्वागत कोई जोशीला स्वागत न होगा-वह भाव-शून्य भी नहीं होगा। वह एक शांत स्वागत होगा। वे स्वागत करेंगे तुम्हारा पूरे हृदय से, लेकिन वे उत्तेजित नहीं होंगे। ऐसा नहीं होगा कि यदि तुम न आते तो वे उदास हो जाते तुम्हारे न आने से। नहीं, वे सदा की भांति आनंदित रहते। यदि तुम आते हो तो वे प्रसन्न हैं; यदि तुम नहीं आते हो तो भी वे प्रसन्न हैं। उनकी प्रसन्नता अपरिवर्तित रहती है, इसीलिए वह शीतल होती है।
जब तुम्हारा मित्र आता है तुमसे मिलने, तुम उत्तेजित हो जाते हो। और ध्यान रहे, तुम बहुत समय तक उत्तेजित नहीं रह सकते, क्योंकि उत्तेजना थकाती है। जल्दी ही तुम सोचने लगते हो, 'कब जाएगा यह आदमी!' पहले तुम उत्तेजित हो जाते हो; फिर तुम भाव-शून्य हो जाते हो। पहले तुम प्रसन्न हो जाते हो क्योंकि मित्र आया है, और फिर तुम प्रसन्न होते हो जब वह चला जाता है।
बद्ध आनंदित ही रहते हैं-मित्र आया है या नहीं, उससे कोई लेना-देना नहीं है। उनके आनंद में कोई परिवर्तन नहीं होता। वे शांत हैं। और शांत प्रेम का अपना सच में ही एक बड़ा अदभुत अनुभव हैकठिन है बात क्योंकि तुम्हारा मन शांत प्रेम शुन्य व्याख्या 'तटस्थ' की भांति करेगा। शांत प्रेम से तुम्हारी कोई पहचान नहीं है; तुम केवल ठंडेपन को जानते हो। तुम्हें लगेगा कि बुद्ध ठंडे हैं, तटस्थ हैं। वे ठंडे नहीं हैं। सभी बुद्ध पुरुष शांत होते हैं। शांत होते हैं इसलिए तुम उन्हें डावाडोल नहीं कर सकते-किसी भी ढंग से; तुम उन्हें सुखी नहीं कर सकते; तुम उन्हें दुखी नहीं कर सकते; वे शांत होते हैं, थिर होते हैं, क्योंकि वे केंद्रस्थ होते हैं।
नौवां प्रश्न: