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जो लोग सेल्फ-कांशस होते हैं, राजनीतिक लोग.. और जब मैं कहता हूं 'राजनीतिक लोग' तो मेरा मतलब उन्हीं से नहीं है जो राजनीति में हैं। वे सब जो किसी न किसी ढंग से दूसरों पर निर्भर हैंराजनीतिक हैं। उनकी कोई आत्मा नहीं होती है। भीतर सब खाली होता है। वे सदा भयभीत रहते हैं अपने खालीपन से कोई भी उन्हें उनके खालीपन की याद दिला सकता है कोई भी एक कुता भी उन्हें उनके खालीपन की याद दिला सकता है!
जो व्यक्ति धार्मिक होता है, सेल्क-कांशस होता है-जोर है कांशसनेस पर चैतन्य पर - उसकी आत्मा होती है, प्रामाणिक आत्मा होती है। तुम उस आत्मा को डावाडोल नहीं कर सकते। तुम उसे बढ़ा नहीं सकते, तुम उसे डिगा नहीं सकते। उसने उपलब्ध किया है उसको। यदि सारा संसार उसके विरुद्ध हो जाए, तो भी उसकी आत्मा उसके साथ होगी। यदि सारा संसार उसका अनुसरण करे, तो उसकी आत्मा में कुछ जुड़ेगा नहीं, कुछ बढ़ेगा नहीं नहीं, बाहर से कुछ फर्क नहीं पड़ता। उसके पास एक प्रामाणिक सत्य होता है-उसके भीतर एक केंद्र होता है।
राजनीतिक व्यक्ति में कोई केंद्र नहीं होता है। वह एक झूठा केंद्र निर्मित करने का प्रयास करता है। वह कुछ तुम से उधार लेता है, कुछ किसी दूसरे से लेता है, कुछ किसी और से लेता है...। इस तरह व्यवस्था जमाता रहता है वह एक झूठा व्यक्तित्व, बहुत से लोगों की राय पर खड़ा ढांचा, वही है उसकी पहचान। यदि लोग उसे भुला दें, तो वह खो जाएगा, वह कहीं का न रहेगा; वस्तुतः वह कुछ भी नहीं रह जाएगा।
अभी तुम देखते हो! एक आदमी राष्ट्रपति हो जाता है, तो अचानक वह कुछ हो जाता है। फिर वह नहीं रहता राष्ट्रपति, तो वह ना - कुछ हो जाता है। तब सारे समाचारपत्र भूल जाते हैं उसको। उन्हें केवल तभी उसकी याद आएगी जब वह मर जाएगा। वह भी कहीं कोने में उल्लेख होगा। वे उसे याद
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करेंगे भूतपूर्व राष्ट्रपति के रूप में व्यक्ति के रूप में नहीं - भूतपूर्व पदधारी के रूप में। क्या तुमने राधाकृष्णन के साथ नहीं देखा क्या हुआ? क्या तुम नहीं देख रहे हो कि वी. वी गिरि के साथ क्या हो रहा है? कहां हैं गिरि? क्या हुआ ? बस व्यक्ति गायब ही हो जाता है! जब तुम किसी पद पर होते हो, तो तुम सभी समाचारपत्रों के मुख्यपृष्ठों पर रहते हो तुम महत्वपूर्ण नहीं हो पद महत्वपूर्ण है।
इसीलिए वे सब लोग जो भीतर गहरे में दीन-हीन होते हैं, किसी पद की तलाश में रहते हैं; वे खोजते हैं लोगों के वोट, लोगों की प्रशंसा इस ढंग से वे एक आत्मा निर्मित कर लेते हैं निश्चित ही एक झूठी आत्मा ।
मनस्विद इस समस्या में गहरे उतरे हैं। वे कहते हैं : जो लोग श्रेष्ठ दिखने की कोशिश करते हैं, वे हीन ग्रंथि से पीड़ित होते हैं; और जो सच में ही श्रेष्ठ होते हैं, वे इस बात की जरा भी चिंता नहीं करते। वे इतने श्रेष्ठ होते हैं कि उन्हें पता भी नहीं होता कि वे श्रेष्ठ हैं। केवल एक हीन व्यक्ति ही सजग हो सकता है इसके प्रति कि वह महान है और वह बहुत संवेदनशील होता है इस बारे में।