Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 372
________________ चुंबन का योग-किसी भी चीज का योग-भोजन पकाने का योग! लेकिन तुम्हें थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, कोई न कोई मढ़ जरूर लिखेगा। तीसरा प्रश्न : अपनी अनुभूतियों में कैसे कोई समग्र हो सकता है-बिना अतियों में गए? | ता मत करो। बस समग्र होओ, और तुम कभी अति पर न जाओगे। साधारणतया यदि तुम इस विषय में सोचते हो, तो ऐसा लगता है कि यदि तुम समग्र होओ, तो तुम अति में चले जाओगे। क्योंकि तुम नहीं जानते कि समग्रता क्या है। समग्रता सदा ध्यान में घटती है। वह मध्य की घटना है। क्योंकि समग्रता संतुलन है। अति पर वह कभी नहीं घटती; अति पर तुम कभी समग्र नहीं हो सकते। इसे समझने की कोशिश करो। तुम किसी को प्रेम करते हो. तुम अतिशय प्रेम में हो सकते हो, लेकिन वह समग्रता नहीं होगी, क्योंकि प्रेम का एक और हिस्सा है, वह है घृणा। तो तुम एक अति पर जा सकते हो, जो है प्रेम; यह एक अति है। फिर कभी-कभी तुम उसी व्यक्ति को घृणा कर सकते हो। तुम दूसरी अति पर चले जाते हो और तुम पूरी तरह घृणा कर सकते हो-या ऐसा तुम्हें लगता है कि तुम पूरी तरह घृणा में हो-लेकिन वह भी एक हिस्सा ही है। पूरी घटना है प्रेम-घृणा दोनों की। यदि तुम एक को चुनते हो तो तुमने एक अति चुन ली है। मेरा बायां हाथ और मेरा दायां हाथ-वे दोनों जुड़े हैं मुझ से। यदि मैं बाएं को चुनता हूं तो मैं बाईं तरफ झुक जाता हूं। यदि मैं दाएं को चुनता हूं तो मैं दाईं तरफ झुक जाता हूं। और जब मैं किसी को नहीं चुनता, तो मैं मध्य में होता हूं। तब दोनों हाथ मेरे हैं, लेकिन मैं उनमें से किसी एक का नहीं हूं। यदि तुम घृणा को चुनते हो, तो तुमने एक हिस्सा चुना। यदि तुम प्रेम को चुनते हो, तो तुमने दूसरा हिस्सा चुना। और यही मुसीबत है : यदि तुम घृणा को चुनते हो, तो देर-अबेर तुम प्रेम करोगे। यदि तुम शत्रु को बहुत समय तक घृणा करते रहते हो, तो तुम प्रेम में पड़ोगे। यदि तुम बहुत समय तक मित्र से प्रेम करते रहते हो, तो तुम घृणा करने लगोगे। क्योंकि कोई बहुत समय तक एक अति पर नहीं रह सकता है। इसीलिए प्रेमी लड़ते-झगड़ते हैं और शत्रु भी गहरे में प्रेमी होते हैं। वे शत्रु के बिना नहीं रह सकते; वे भी एक-दूसरे का सहारा होते हैं। यह विपरीत ढंग का प्रेम है लेकिन है प्रेम ही।

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