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कई बार, जब मैं भारत में भ्रमण करता था, , बहुत स्थानों पर बहुत लोग मुझ से एक प्रश्न बार-बार पूछते थे। प्रश्न बहुत उचित और प्रासंगिक जान पड़ता है। वे मुझ से पूछते थे, ऐसा क्यों है कि भारत में इतने सारे संत हुए, और फिर भी देश इतना अनैतिक है?
मैं उनसे कहता कि ऐसा स्वाभाविक है। जब कोई देश इतने सारे संतो को पैदा करता है तो उसे उतनी ही संख्या में पापी पैदा करने पड़ते हैं, वरना संतुलन नहीं रहेगा। जब कोई देश इतने सारे तीर्थंकर–चौबीस तीर्थंकर, इतने अवतार- चौबीस अवतार, इतने बुद्ध - चौबीस बुद्ध पैदा करता है; तो पापी कहां जाएंगे? और कोई बुद्ध यहां कैसे हो सकते हैं यदि तमाम पापियों की भीड़ न हो? बुद्ध होते हैं पापियों के महासागर में; और कोई ढंग नहीं है। एक बुद्ध के होने के लिए लाखों पापी चाहिए। असल में उन्हीं पापियों के कारण वे इतने सबुद्ध दिखाई पड़ते हैं. तुलना चाहिए। ब्लैक बोर्ड की काली पृष्ठभूमि पर तुम सफेद खड़िया से लिखते हो, वह इतना उभर कर दिखाई पड़ता है - और भी सफेद- सामान्य सफेद से ज्यादा सफेद दिखाई पड़ता है। सफेद दीवार पर लिखो सफेद चाक से, तो कुछ पता नहीं चलता। जब मनुष्यता सच में ही प्रौढ़ होगी, संतुलित होगी, तब कोई बुद्ध न होंगे : वह सफेद दीवार पर सफेद खड़िया से लिखने जैसा होगा। उन्हें पहचानने के लिए बड़ी अंधकारपूर्ण मनुष्यता चाहिए। इसलिए अगर तुम मुझसे पूछते हो, तो मैं ऐसे संसार की आशा करता हूं जहां किसी बुद्ध की कोई जरूरत नहीं होगी- चीजें इतनी संतुलित होंगी।
यही लाओत्से बार-बार कहते हैं, ऐसा समय था अतीत में जब कोई संत न थे क्योंकि कोई पापी न थे। ऐसा समय था अतीत में जब चीजें इतनी स्वाभाविक थीं और इतनी संतुलित थी कि का गलत
है और क्या सही है - ऐसी कोई धारणा न थी। लाओत्सु कहते हैं, 'सही की धारणा के साथ ही प्रवेश कर जाता है।' विपरीतताएं साथ-साथ होती हैं। वे साथ-साथ आती हैं; वे साथ शान चलती हैं। वे एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक ही के दो रूप हैं।
नहीं चुना जा सकता। तुम्हें
यदि तुम चुनते हो, तो तुम एक छोर को चुनते हो और संतुलन चुनावरहित रहना पड़ेगा, तो संतुलन आता है-न यह होता है नेति नेति ।' अचानक तुम संतुलन को उपलब्ध हो जाते हो, मध्य में आ जाते हो, और अस्तित्व की सारी महिमा तुम पर बरस जाती है। तुम तृप्त हो जाते हो।
यह प्रश्न महत्वपूर्ण लगता है, लेकिन है नहीं अपनी अनुभूतियों में कैसे कोई समग्र हो सकता हैबिना अतियों में गए? यदि तुम समग्र हो, तो तुम अति पर नहीं होओगे; यदि तुम किसी अति पर हो, तो तुम समग्र नहीं होओगे । समग्र और संतुलित होने की कोशिश करो, और अतियां अपने आप खो जाएंगी। वे तुम्हारे चुनाव के कारण हैं, क्योंकि तुम चुनते हो, इसलिए वे हैं।
चुनी मत मत कहो कि 'यह अच्छा है" और मत कहो कि वह बुरा है।' सजग रहो, बस इतना ही मत कहो कि यह संत है और वह पापी है।' सजग रहो, बस इतना ही और समय को स्वीकार करो। पापी