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मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन एक बड़े चिकित्सक के पास चिकित्सा विज्ञान सीख रहा था। वह ध्यान से देखता अपने डाक्टर को ताकि कुछ चूक न जाए। जब डाक्टर मरीजों को देखने के लिए जाता, तो मुल्ला साथ हो लेता। एक दिन मुल्ला बड़ा हैरान हुआ। डाक्टर ने नब्ज पकड़ी मरीज की, अपनी आंखें बंद कीं, थोड़ी देर चुप रहा और फिर कहा, 'तुमने बहुत आम खाए हैं।'
मुल्ला हैरान रह गया। कैसे नब्ज देख कर वह पता लगा सका? उसने कभी नहीं सुना था कि कोई नब्ज देख कर पता लगा सकता हो कि तुमने आम खाए हैं। वह उलझन में पड़ गया। घर लौटते समय उसने पूछा, 'गुरु जी, कृपया मुझे थोड़ा समझाएं। कैसे आप बता सके...?'
डाक्टर हंसा, उसने कहा, 'नब्ज देख कर पता नहीं चल सकता, लेकिन मैंने मरीज के बिस्तर के नीचे झांका तो वहां बहुत से आम थे-कुछ बिना खाए हुए और कुछ खाए हुए। तो मैंने अनुमान लगा लिया, वह एक अनुमान की बात थी।'
फिर एक दिन डाक्टर बीमार था तो मुल्ला को जाना पड़ा मरीजों को देखने। वह एक नए मरीज के घर गया। उसने उसकी नब्ज पकड़ी, अपनी आंखें बंद की, थोड़ा सोच-विचार किया-ठीक पुराने डाक्टर की भांति ही-और फिर उसने कहा, 'तुमने बहुत घोड़े खाए हैं!'
मरीज ने कहा, 'क्या कहते हो! क्या आप पागल हो गए हो?'
मुल्ला बहुत उलझन में पड़ गया। वह बहुत बेचैन
और उदास घर आया।
के डाक्टर ने पूछा, 'क्या हुआ?'
उसने कहा, 'मैंने भी बिस्तर के नीचे देखा था। घोड़े की जीन और दूसरी कई चीजें वहां थीं-घोड़ा भर नहीं था तो मैंने सोचा, इसने घोड़े खाए होंगे।'
ऐसे ही मूढ़ मन नकल करता रहता है। मूढ़ मत बनो। इन सूत्रों को इशारों की तरह समझो। उन्हें हिस्सा बनने दो अपनी समझ का, लेकिन उनकी नकल करने की कोशिश मत करो। उन्हें गहरे उतरने दो अपने भीतर, ताकि वे तुम्हारी समझ बन जाएं; और फिर तुम खोज लेना अपना मार्ग| गहरी शिक्षा हमेशा परोक्ष होती है।
कैसे उपलब्ध हो यह आसन? कैसे मिले यह स्थिरता? पहले ध्यान दो कि शरीर कब सुख में होता है। यदि तुम्हारा शरीर गहन सुख में, गहन विश्राम में होता है, अच्छा अनुभव कर रहा होता है, एक स्वास्थ्य घेरे होता है तुमको : तो वही निर्णय का मापदंड होना चाहिए, वही कसौटी होनी चाहिए। और यह खड़े हुए संभव है, यह बैठे हुए संभव है, यह लेटे हुए संभव है। यह कहीं भी संभव है, क्योंकि यह आंतरिक अनुभूति है सुख की, आराम की।