________________
बात नहीं है, कोई महत्व नहीं है उसका, लेकिन फिर भी वह बेजोड़ है इससे पता चलता है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक अनूठी आत्मा है। यदि तुम्हारे अंगूठे का निशान भी दूसरे से इतना अलग है, तो तुम्हारा शरीर, तुम्हारा पूरा शरीर जरूर ही अलग होगा।
तो कभी किसी दूसरे की बात मत सुनना । तुम्हें अपना आसन ढूंढ लेना है। इसे सीखने के लिए किसी शिक्षक के पास जाने की जरूरत नहीं; सुख की तुम्हारी अपनी अनुभूति ही शिक्षक है। और यदि तुम प्रयोग करो - तो कुछ दिन उन सभी आसनों को आजमा लेना जिनकी तुम्हें जानकारी है, सभी तरह से बैठ कर देख लेना। एक दिन तुम पा लोगे, ढूंढ लोगे अपना आसन और जिस क्षण तुम्हें अपना आसन मिल जाएगा तुम्हारे भीतर की हर चीज शांत और मौन हो जाएगी। और दूसरा कोई तुम्हें नहीं बता सकता है, क्योंकि कोई नहीं जान सकता तुम्हारे शरीर की समस्वरता को कि वह किस आसन में एकदम स्थिर और आराम में होगी।
तो अपना आसन ढूंढ लेना, अपना योग पहचान लेना और कभी बंधे बंधाए नियमों का अनुसरण मत करना, क्योंकि नियम औसत के लिए बने होते हैं। वे बिलकुल ऐसे होते हैं जैसे कि पूना में एक लाख व्यक्ति हैं. कोई पांच फीट है, कोई पांच फीट पांच इंच है, कोई साढ़े छह फीट है। एक लाख व्यक्ति हैं तुम उनकी ऊंचाई नाप लो और फिर तुम एक लाख व्यक्तियों की कुल ऊंचाई में एक लाख से भाग दे दो, तो तुम्हें औसत ऊंचाई मिल जाएगी। वह हो सकती है चार फीट आठ इंच या ऐसी ही कुछ फिर तुम जाओ और खोजो औसत व्यक्ति को तुम कभी न पाओगे उसे औसत व्यक्ति कहीं होता नहीं।' औसत संसार की सबसे झूठी बात है। कोई व्यक्ति औसत नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अनूठा है; कोई औसत नहीं है। औसत गणित की दुनिया की बात है - वह सत्य नहीं है, वह वास्तविक नहीं है।
सारे नियम औसत के लिए बने होते हैं। वे अच्छे हैं किसी विशेष बात को समझने के लिए, लेकिन उनका अनुसरण बिलकुल मत करना, अन्यथा तुम बेचैनी अनुभव करोगे चार फीट आठ इंच औसत ऊंचाई है! अब तुम हो पांच फीट के, चार इंच ज्यादा हैं-काट कर कम करो! बड़ी बेचैनी होती है। तब तुम ऐसे चलते हो, जिससे तुम औसत दिखाई पड़ो तुम भद्दे दिखोगे, अष्टावक्र मालूम : पड़ोगे । तुम ऊंट जैसे हो जाओगे, हर कहीं से आड़े तिरछे जो व्यक्ति औसत का अनुसरण करने की कोशिश करता है वह चूकेगा।
औसत एक गणितीय घटना है, और गणित कहीं अस्तित्व नहीं रखता समग्र अस्तित्व में वह केवल मनुष्य - मन की ईजाद है। यदि तुम अस्तित्व में गणित को खोजने की कोशिश करो तो तुम उसे कहीं नहीं पाओगे। इसीलिए गणित एकमात्र पूर्ण विज्ञान है, क्योंकि वह नितांत असत्य है। केवल असत्य के साथ ही तुम परिपूर्ण हो सकते हो। वास्तविकता तुम्हारे नियमों की, निर्धारित व्यवस्थाओं की फिक्र नहीं करती। वास्तविकता अपने ढंग से चलती है। गणित एक पूर्ण विज्ञान है, क्योंकि वह