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बौद्धिक है, मनुष्य-निर्मित है। यदि मनुष्य खो जाए पृथ्वी से, तो गणित सबसे पहले खो जाएगा। बाकी दूसरी चीजें तो बनी रह सकती हैं, लेकिन गणित नहीं बच सकता।
सदा स्मरण रहे, सारे नियम और अनुशासन औसत के लिए हैं; और औसत कोई है नहीं। और औसत होने की कोशिश मत करना; कोई हो भी नहीं सकता। व्यक्ति को अपना रास्ता खोजना होता है। औसत को जानना-समझना, उससे मदद मिलेगी, लेकिन उसे नियम मत बना लेना। समझने के लिए उसका उपयोग कर लेना। बस समझ लेना उसे, और भूल जाना उसके विषय में। उससे थोड़ा इशारा मिल सकता है, लेकिन सुनिश्चित समझ नहीं मिल सकती। वह एक अस्पष्ट नक्यो जैसी बात होगी, एकदम सही नहीं। वह नक्यग तुम्हें केवल कुछ संकेत दे सकता है, लेकिन तुम्हें अपनी अनुभूति के हिसाब से चलना पड़ता है। तुम कैसा अनुभव करते हो, यही बात निर्णायक है। इसीलिए पतंजलि यह परिभाषा देते हैं, ताकि तुम अपनी अनुभूति से चल सको।
'स्थिर सुखम् आसनम्।
इससे बेहतर कोई और व्याख्या नहीं हो सकती आसन की : 'आसन को स्थिर और सुखद होना चाहिए।' असल में मैं इसे दूसरे ढंग से कहना चाहूंगा और संस्कृत के सूत्र की व्याख्या दूसरे ढंग से हो सकती है-आसन वही है जो स्थिर और सुखद हो। स्थिर सुखम् आसनम्. जो स्थिर और सुखद हो वही आसन है। और यही ज्यादा सही अनुवाद है। जिस क्षण तुम 'चाहिए' बीच में ले आते हो, चीजें कठिन हो जाती हैं। संस्कृत के सूत्र में कहीं कोई 'चाहिए' नहीं है। लेकिन अनुवाद में वह आ जाता है। मैंने पतंजलि के बहुत से अनुवाद देखे हैं। वे सब यही कहते हैं. 'आसन को स्थिर और सुखद होना चाहिए।' संस्कृत का मूल पाठ कहता है-स्थिर सुखम् आसनम्-कहीं कोई 'चाहिए' नहीं है। स्थिर सुखम् आसनम्-खत्म हो जाती है बात। स्थिर हो, सुखद हो, वही आसन है। यह 'चाहिए' क्यों जोड़ा गया है? क्योंकि हम इसमें से नियम बना लेना चाहते हैं। यह तो एक सीधी-सादी परिभाषा है-एक इंगित है, एक इशारा है। यह कोई नियम नहीं है।
और सदा स्मरण रहे कि पतंजलि जैसे व्यक्ति कभी नियम नहीं देते; वे इतने मूढ़ नहीं हैं। वे केवल इशारे देते हैं, संकेत देते हैं। तुम्हें संकेत का अर्थ अपने अंतस में खोलना पड़ता है। तुम्हें अनुभव करना है उसे, समझना है और प्रयोग करना है उसे, तब तुम नियम तक पहुंचोगे। लेकिन वह नियम केवल तुम्हारे लिए होगा-किसी और के लिए नहीं।
यदि लोग इस बात पर ध्यान रख सकें, तो यह संसार बहुत ही सुंदर संसार होगा-कोई किसी को कुछ करने के लिए मजबूर नहीं कर रहा होगा; कोई किसी दूसरे को अनुशासित करने की कोशिश नहीं कर रहा होगा। क्योंकि तुम्हारा अनुशासन तुम्हारे लिए ठीक रहा होगा, वह किसी दूसरे के लिए जहर हो सकता है। जरूरी नहीं है कि तुम्हारी औषधि सबके लिए औषधि हो। उसे दूसरों को मत देना। लेकिन मूढ़ व्यक्ति सदा नियमों दवारा जीते हैं।