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चाणक्य भारत का मैक्यावेली है, और कुछ ज्यादा ही चालाक है मैक्यावेली से, क्योंकि भारतीय चित्त की एक खूबी है-एकदम जड़ों तक जाने की। यदि वे बुद्ध होते हैं, तो सच में वे बुद्ध होते हैं। यदि वे चाणक्य होते हैं, तो तुम मुकाबला नहीं कर सकते उनके साथ। जहां भी वे उतरते हैं, वे एकदम जड़ों तक उतरते हैं। मैक्यावेली थोड़ा बचकाना है चाणक्य के सामने। चाणक्य परम शिखर है।
तो बुद्ध को जरूर शिक्षा दी गई होगी; प्रत्येक राजकुमार को तैयार किया जाता है। मैक्यावेली की सब से महत्वपूर्ण पुस्तक का नाम है : 'दि प्रिंस'। बुद्ध को सिखाए गए होंगे संसार के ढंग; उनको जीना था सांसारिक व्यक्तियों के बीच। उन्हें अपना साम्राज्य सम्हालना था। और फिर वे सब छोड़ कर चले गए। लेकिन महल छोड़ कर चले जाना आसान है, राज्य छोड़ कर चले जाना आसान है, मन के प्रशिक्षण को छोड़ना कठिन है।
छह वर्ष तक उन्होंने संकल्प दवारा परमात्मा को पाने का प्रयास किया। उन्होंने वह सब किया जो किसी मनुष्य के लिए संभव है-वह भी किया जो मनुष्य के लिए संभव नहीं है। उन्होंने सब कुछ किया, उन्होंने कुछ भी अनकिया नहीं छोड़ा। लेकिन कुछ भी नहीं हुआ। जितनी ज्यादा उन्होंने कोशिश की, उतना ही दूर उन्होंने अपने को पाया। असल में जितना ज्यादा संकल्प उन्होंने किया और जितने कठिन प्रयास किए, उतना ही उन्होंने अनुभव किया कि वे दूर हैं-परमात्मा कहीं नहीं है। कुछ उपलब्धि नहीं हुई।
फिर एक शाम उन्होंने सब छोड़ दिया। उसी रात वे बुद्धत्व को उपलब्ध हो गए। उसी रात घटित हुआ 'प्रयत्न शैथिल्य'-प्रयास की शिथिलता। वे संकल्प द्वारा बुद्ध नहीं हुए, वे बुद्ध हुए जब उन्होंने समर्पण किया, जब उन्होंने सारा प्रयास छोड़ दिया।
मैं तुम्हें ध्यान सिखाता हूं और मैं तुम से कहता रहता हूं 'हर संभव प्रयास करो जो कि तुम कर सकते हो, लेकिन सदा स्मरण रहे, हर संभव प्रयास पर यह जोर केवल इसीलिए है ताकि तुम्हारा संकल्प बिखर जाए, ताकि तुम्हारा संकल्प हार जाए और संकल्प के साथ जुड़ा सपना टूट जाए। तुम संकल्प से इतने थक जाओ कि एक दिन तम गिर पड़ो, तुम हार कर सब छोड़ दो। उसी दिन तुम सबुद्ध हो जाते हो। लेकिन जल्दी मत करना, क्योंकि तुम बिना प्रयास किए हुए ही सब प्रयास छोड़ सकते हो, वह बात मदद न करेगी। उससे कोई मदद न मिलेगी। वह एक चालबाजी होगी। और तुम परमात्मा से नहीं जीत सकते चालबाजी द्वारा। तुम्हें बहुत निर्दोष होना होगा। बुद्धत्व अपने आप घटित होता है।
ये सीधी-साफ परिभाषाएं हैं। पतंजलि नहीं कह रहे हैं, 'ऐसा करो।' वे तो बस मार्ग दिखा रहे हैं। यदि तुम समझ लेते हो उसे, तो वह प्रभावित करने लगेगा तुमको, तुम्हारे मार्ग को, तुम्हारे अंतस को। आत्मसात करो उसको। उसे गहरे उतरने दो अपने में। उसे बहने दो अपने रक्त में। उसे बनने दो मांस-मज्जा। बस इतना ही। भूल जाओ पतंजलि को। ये सूत्र रटने के लिए नहीं हैं। इन्हें स्मृति में