Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 03
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 361
________________ श्वास की गहन लयबद्धता में कोई सेतु तुम्हें जोड़ता है; तुम एक हो जाते हो, क्योंकि श्वास जीवन है। तब अनुभूति दूसरे तक पहुंच सकती है, विचार दूसरे तक पहुंच सकते हैं। यदि तुम किसी संत से मिलने जाओ तो सदा उसकी श्वास पर ध्यान देना। और यदि तुम एक संवाद अनुभव करते हो, उसके साथ एक गहन प्रेम अनुभव करते हो, तो फिर अपनी श्वास पर भी ध्यान देना। तुम अचानक अनुभव करोगे कि तुम उसके जितने ज्यादा पास आते हो, तुम्हारी भाव-दशा, तुम्हारी श्वास उसके साथ मेल खाने लगती है। जाने या अनजाने, सवाल उसका नहीं है; लेकिन यह होता है। यह मेरा अनुभव रहा है. यदि मैं देखता हूं कि कोई आया है और वह श्वास के विषय में कुछ भी नहीं जानता है और वह मेरी श्वास की लय में श्वास लेने लगता है तो मैं जान लेता हूं कि वह संन्यासी होने वाला है, और मैं संन्यास के लिए उससे पूछता हूं। यदि मुझे लगता है कि वह मेरी श्वास की लय में श्वास नहीं ले रहा है, तो मैं संन्यास की बात भूल ही जाता हूं तो मुझे प्रतीक्षा करनी होगी। और कई बार मैंने आजमाया है, केवल प्रयोग करने के लिए मैंने पूछ लिया, और वह व्यक्ति कहता है, 'नहीं, मैं तैयार नहीं हैं।' मैं जानता था यह बात कि वह तैयार नहीं है - बस जांच ने के लिए ही पूछता हैं कि मेरी अनुभूति ठीक है या नहीं, कि क्या वह मेरे साथ संवाद मैं है? जब तुम संवाद में होते हो, तो तुम साथ -साथ श्वास लेते हो। यह अपने आप होता है; कुछ अज्ञात नियम काम करते हैं। प्राणायाम का मतलब है : समग्र के साथ श्वास लेना-यह है मेरा अनुवाद; 'श्वास का नियंत्रण' नहीं। प्राणायाम है समग्र के साथ श्वास लेना, इसमें नियंत्रण कहीं आता ही नहीं! यदि तुम नियंत्रण करते हो, तो कैसे तुम समग्र के साथ श्वास ले सकते हो? तो 'प्राणायाम' को 'श्वास का नियंत्रण' कहना गलत है। सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। प्राणायाम है समग्र के साथ श्वास लेना-शाश्वत और समग्र की श्वास के साथ एक हो जाना। तब तुम विस्तार पाते हो। तब तुम्हारी जीवन-ऊर्जा फैलती चली जाती है पेड़ों और पहाड़ों और आकाश तारों के साथ। तब एक घड़ी आती है, जब तम बदध हो जाते हों-तम परी तरह खो जाते हो। अब तुम श्वास नहीं लेते, समग्र श्वास लेता है तुम में। अब तुम्हारी श्वास और समग्र की श्वास अलग नहीं होती। वे एक होती हैं। इतनी एक होती हैं कि अब यह कहना व्यर्थ होता है कि 'यह मेरी श्वास है।' 'आसन की सिद्धि के बाद का चरण है प्राणायाम। यह सिद्ध होता है श्वास और प्रश्वास पर कुंभक करने से, या अचानक श्वास को रोकने से।' जब तुम श्वास भीतर लेते हो, तो एक घड़ी आती है जब श्वास पूरी तरह भीतर होती है और कुछ क्षणों के लिए श्वास ठहर जाती है। ऐसा ही तब होता है जब तुम श्वास बाहर छोड़ते तो। तुम श्वास बाहर छोड़ते हो, जब श्वास पूरी तरह बाहर होती है, तब फिर कुछ क्षणों के लिए श्वास ठहर जाती है।

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