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मैंने उनसे कहा, 'अगर सच में ही शाति पाना चाहते हो तो तुम्हें राजनीति छोड़नी होगी। यह मंत्रीपद नहीं चल सकता शांत होने के साथ यदि तुम शांत होते हो, तो तुम मंत्री न रहोगे तो तुम निर्णय कर लो। मैं तुम्हें शांत होना सिखा सकता हूं लेकिन फिर नाराज मत होना, क्योंकि ये दोनों बातें एक साथ संभव नहीं हैं तो पहले अपनी राजनीति से छुटकारा पा लो, फिर आना मेरे पास ।'
उन्होंने कहा, 'ऐसा संभव नहीं। मैं तो शांत इसीलिए होना चाहता हूं ताकि मैं और मेहनत कर सकूं और मुख्यमंत्री बन सकूं। मन के इन तनावों और हमेशा की चिंताओं के कारण मैं ज्यादा मेहनत नहीं कर पाता। और दूसरे वे लगे ही रहते हैं। वे बड़े प्रतियोगी हैं, और बाजी मेरे हाथ से निकली जा रही है। मैं राजनीति छोड़ने के लिए नहीं आया हूं।'
तब मैंने कहा, 'तो कृपया, थक जाइए, ऊब जाइए
, मेरे पास मत आइए। भूल जाइए मेरे बारे में। राजनीति में ही रहिए । सचमुच पहले पूरी बात को जी लीजिए, फिर आइए मेरे पास ।'
शांत होना एक बिलकुल ही अलग आयाम है-ठीक विपरीत आयाम है। तुम संसार में सफल होते हो संकल्प के साथ नीत्से ने एक किताब लिखी है, 'दि विल टु पावर' संसार में सफलता का यही सूत्र है. विल टु पावर पतंजलि का मार्ग नहीं है विल टु पावर, वह है समग्रता के प्रति समर्पण। पहली बात है. 'प्रयत्न शैथिल्य' – अप्रयास तुम्हें तो बस विश्राम में होना है बहुत प्रयास मत करना इस विषय में; अनुभूति को ही काम करने देना। संकल्प को मत ले आना बीच में कैसे तुम आराम को जबरदस्ती थोप सकते हो अपने ऊपर? यह असंभव है। तुम विश्राम में हो सकते हो यदि तुम सहजता से शिथिल हो जाओ तुम उसे जबरदस्ती नहीं ला सकते।
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कैसे तुम जबरदस्ती ला सकते हो प्रेम को? यदि तुम किसी व्यक्ति से प्रेम नहीं करते, तो नहीं करते। क्या कर सकते हो तुम? तुम कोशिश कर सकते हो, दिखावा कर सकते हो, जबरदस्ती कर सकते हो अपने साथ लेकिन एकदम विपरीत परिणाम होगा। यदि तुम कोशिश करते हो किसी व्यक्ति से प्रेम करने की तो तुम उससे और घृणा करने लगोगे। तुम्हारे प्रयत्नों का एकमात्र परिणाम यही होगा कि तुम घृणा करने लगोगे उस व्यक्ति से, क्योंकि तुम बदला लोगे। तुम कहोगे, 'यह कैसा अजीब व्यक्ति है, क्योंकि मैं तो इतनी कोशिश कर रहा हूं प्रेम करने की और कुछ घटता ही नहीं!' तुम उसे जिम्मेवार ठहराओगे। तुम उसे अपराधी ठहराओगे, जैसे कि वही कर रहा है कुछ।
वह कुछ नहीं कर रहा है। प्रेम संकल्प से नहीं हो सकता, प्रार्थना संकल्प से नहीं हो सकती, आसन संकल्प से नहीं हो सकता । तुम्हें इनकी अनुभूति में उतरना पड़ता है। अनुभूति एकदम अलग बात है संकल्प से।
बुद्ध संकल्प के मार्ग से बुद्ध नहीं बन सके। उन्होंने लगातार छह वर्ष तक प्रयत्न किया संकल्प से। वे संसारी व्यक्ति थे, राजकुमार की भांति शिक्षा-दीक्षा हुई थी उनकी। सम्राट बनने का प्रशिक्षण मिला था उन्हें उन्हें जरूर वही सब सिखाया गया होगा जो चाणक्य ने कहा है।