________________ दूसरे लोगों से मिलने से, दूसरे धर्मों को, शास्त्रों को जानने से शायद तुम थोडे सजग हो जाओ कि केवल हिंदू ही ठीक नहीं हैं, दूसरे लोग भी सही हैं-कुरान भी ठीक है, केवल वेद ही ठीक नहीं हैंलेकिन यदि तुम अचेतन में गहरे देखो, तो तुम सदा पाओगे एक सूक्ष्म पक्षपात वेद हमेशा सब से ऊपर होंगे। तुम प्रशंसा करते हो क्राइस्ट की, लेकिन कृष्ण ही सब से ऊपर होंगे! बटैंड रसेल जैसा आदमी भी, जो कि बिलकुल अज्ञेयवादी हो गया था अपने अंतिम दिनों में, धर्म से हट गया था, ईश्वर में या पुनर्जन्म में विश्वास करना छोड़ दिया था वह स्वयं कहता है कि उसको भलीभांति मालूम है कि इस संसार में बुद्ध सर्वाधिक महान व्यक्ति जान पड़ते हैं; लेकिन केवल बौद्धिक रूप से ही वह कह सका ऐसा, उसका हृदय तो कहता ही रहा–'नहीं, बुद्ध कैसे इतने महान हो सकते हैं-जीसस से ज्यादा महान? यह संभव नहीं।' तो वह कहता है, 'ज्यादा से ज्यादा मैं उन्हें बराबर रख सकता हूं। लेकिन मैं ऊंचे नहीं रख सकता बुद्ध को। और मैं बौद्धिक रूप से जानता हूं कि बुद्ध जीसस के मुकाबले बहुत महान मालूम होते हैं। लेकिन वह बचपन की शिक्षा तुम्हारे हृदय को जकड़े रहती है। तो धर्म तुम्हें संस्कारित करते रहे, राजनेता तुम्हें संस्कारित करते रहे : तुम एक संस्कारित चित्त हो। केवल ध्यान द्वारा संभावना है तुम्हारे मन को अ-संस्कारित करने की। केवल ध्यान ही संस्कारों के पार जाता है। क्यों? क्योंकि प्रत्येक संस्कार विचारों के द्वारा काम करता है। यदि तुम अनुभव करते हो कि तुम हिंदू हो, तो क्या है यह? विचारों का एक बंडल तुम्हें दे दिया गया, जब तुम जानते भी न थे कि तुम्हें क्या दिया जा रहा है। विचारों की एक भीड़-और तुम ईसाई हो जाते हो, कैथोलिक हो जाते हो, प्रोटेस्टेंट हो जाते हो। ध्यान में विचार तिरोहित हो जाते हैं-सभी विचार। तुम निर्विचार हो जाते हो। मन की निर्विचार अवस्था में कोई संस्कार नहीं रहते. फिर तुम हिंदू नहीं रहते, ईसाई नहीं रहते; कम्युनिस्ट नहीं रहते, फासिस्ट नहीं रहते। तुम कुछ भी नहीं रहते-तुम केवल तुम होते हो। पहली बार सारी संस्कारों की जंजीरें गिर चुकी होती हैं। तुम कैद के बाहर होते हो। केवल ध्यान ही तुम्हें संस्कार-मुक्त कर सकता है। कोई सामाजिक क्रांति मदद न देगी, क्योंकि क्रांतिकारी फिर तुम्हें संस्कारित कर देंगे-अपने ढंग से। उन्नीस सौ सत्रह में रूस में क्रांति हई। इससे पहले वह सर्वाधिक रूढ़िवादी ईसाई देशों में एक था। रूसी चर्च सर्वाधिक पुराना चर्च था-वेटिकन से ज्यादा रूढ़िवादी-लेकिन फिर, अचानक, रूसियों ने हर चीज बदल दी। चर्च बंद हो गए-वे स्कूलों में, कम्युनिस्ट पार्टी के दफ्तरों में, अस्पतालों में बदल दिए गए-धार्मिक शिक्षा पर रोक लगा दी गई, और उन्होंने लोगों को कम्युनिज्म के लिए संस्कारित करना शुरू कर दिया। दस वर्षों के भीतर सब नास्तिक हो गए। केवल दस वर्षों में ही! उन्नीस सौ सत्ताईस तक सारा धर्म गायब हो चुका था रूस से; उन्होंने लोगों को एक दूसरे ही ढंग में संस्कारित कर दिया।