________________
पहली बात : मेरा किसी के प्रति कोई कर्तव्य नहीं है जिसे मुझे पूरा करना है। 'कर्तव्य' एक गंदा शब्द है, मेरे देखे एक भदा शब्द है, सर्वाधिक भददा शब्द है। प्रेम कोई कर्तव्य नहीं है। अगर लोगों की मदद करना तुम्हारा प्रेम है, तो तुम आनंदित होते हो। यह कर्तव्य नहीं है, यह कोई बोझ नहीं हैं। कोई मुझे जबरदस्ती मजबूर नहीं कर रहा है कुछ करने के लिए। ऐसा करने के लिए किसी भी ढंग से मैं बाध्य नहीं हूं-यह बस प्रेम का एक प्रवाह है।
जब प्रेम मर जाता है, तो कर्तव्य आता है। तुम लोगों से कहते हो, 'यह मेरा कर्तव्य है कि मैं आफिस में काम करूं क्योंकि मेरे पत्नी-बच्चे हैं और कर्तव्य तो निभाना ही होता है। तो तुम प्रेम नहीं करते अपने बच्चों से-इसीलिए यह शब्द 'कर्तव्य' अर्थपूर्ण हो जाता है। तुम्हारी की मां मर रही है और तुम कहते हो, 'यह मेरा कर्तव्य है कि मैं मां की सेवा करूं।' तुम मां से प्रेम नहीं करते। अगर तुम प्रेम करते हो, तो कैसे तुम प्रयोग कर सकते हो यह शब्द- 'कर्तव्य'?
एक पुलिस वाला सड़क पर खड़ा हुआ अपना कर्तव्य पूरा कर रहा होता है। ठीक है बात, वह प्रेम नहीं करता उन लोगों से जो कि ट्रैफिक में अव्यवस्था पैदा कर रहे हैं। जब तुम अपने आफिस जाते हो, तो तुम एक कर्तव्य पूरा कर रहे हो, एक नौकरी। किंतु यदि तुम कहते हो कि दुम अपने बच्चों के प्रति अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हो, तो तुम इस शब्द का प्रयोग करके पाप कर रहे हो। तुम प्रेम नहीं करते बच्चों से : तुम बोझ ढो रहे हो।
नहीं, मेरा कोई कर्तव्य नहीं है जिसे पूरा करना है। मैं तुमको प्रेम करता हूं? इसलिए बहुत सी बातें होती हैं। मेरे प्रति कृतज्ञ होने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं कोई कर्तव्य नहीं निभा रहा है। यदि मैं कर्तव्य पूरा कर रहा होऊं, तो तुम्हें मेरे प्रति कृतज्ञ होना होगा। यह तो बस प्रेम की बात है।
असल में मैं तुम्हारा कृतज्ञ हूं कि तुमने मेरे प्रेम को अपने ऊपर बरसने दिया। तुम इनकार कर सकते थे। और यही है प्रेम का राज : जितना ज्यादा तुम प्रेम बांटते हो, उतना ज्यादा वह बढ़ता है। जितना ज्यादा तुम बांटते हो, उतने ज्यादा जीवंत स्रोत फूट पड़ते हैं और वह ज्यादा बरसता है और
तना ज्यादा तुम देते हो, उतना ज्यादा तुम पर बरस जाता है। मैं थका नहीं हूं। मैं किसी भी ढंग से उससे बोझिल नहीं हूं। यह बात सुंदर है।
पहली तो बात : मेरा कोई कर्तव्य नहीं है तुम्हारे प्रति पूरा करने के लिए। यदि तुम ऐसा गुरु चाहते हो जिसका कोई कर्तव्य हो, तो तुम गलत आदमी के पास आ गए हो। कहीं और जाओ। बहुत से गुरु हैं जो बड़े-बड़े कर्तव्यों को पूरा कर रहे हैं। मैं तो बस आनंदित हं स्वयं में। क्यों पूरा करूं मैं कोई कर्तव्य? मैं आनंदित हूं अपने साथ। और जो कुछ मैं करता हूं वह मेरा आनंद है, मेरा उत्सव है।' अगर मैंने आपसे संन्यास न लिया होता तो मैंने आपको छोड़ दिया होता।'
अगर ऐसा विचार आ गया है, तो तुम छोड़ ही चुके हो। शारीरिक रूप से ही तुम यहां मौजूद हो, जो कि अर्थहीन है। अगर तुम कहते हो, 'अगर मैंने आपसे संन्यास न लिया होता तो मैंने आपको छोड़