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कोई बाधा खड़ी नहीं करते मौजूदगी के ही काम करती है कुछ होने लगता है -
प्रवेश करने में गुरु स्वयं कुछ करता नहीं है। उसकी मौजूदगी यदि शिष्य खुला हुआ है, तो कुछ होने लगता है।
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शिष्य जरूर अनुगृहीत अनुभव करेगा सदगुरु के प्रति, क्योंकि उसके बिना यह करीब-करीब असंभव ही है। लेकिन सदगुरु सदा जानता है कि उसने कुछ नहीं किया। तो यदि तुम जाओ सदगुरु के पास और कहो, 'आपकी बहुत कृपा है।' तो वह कहेगा, परमात्मा की कृपा है। मैंने कुछ किया नहीं। यदि गुरु कहे, मैंने किया है, तो वह गुरु नहीं है, क्योंकि वह 'मैं ही बता देता है कि वह गुरु नहीं है। वह तुम्हारे लिए कैटेलिटिक एजेंट नहीं हो सकता। वह सोचता है कि वह कर्ता है; और कर्ता कैटेलिटिक एजेंट नहीं हो सकता।
गुरु तो केवल एक मौजूदगी है तुम्हारे आस-पास, तुम्हें घेरे रहता है बादल की भांति । यदि तुम उसे भीतर आने देते हो, तो वह प्रवेश कर जाता है तुम्हारे अंतरतम केंद्र में। ऐसा नहीं कि वह प्रवेश करता है; तुम आने देते हो उसे बस ऐसा घटता है और उस क्षण में जब शिष्य खुला होता है और गुरु मौजूद होता है : एक परिवर्तन घटता है। उसे आमूल रूपातरण कहना बेहतर होगा - एल्केमिकल म्यूटेशन - शिष्य भी तिरोहित हो जाता है, वैसे ही जैसे गुरु तिरोहित हो चुका है। अहंकार खो जाता है। शिष्य भी अकर्ता हो जाता है। अब वह दूसरों के लिए मौजूदगी की भांति काम कर सकता है। अब वह गुरु हो सकता है।
सारिपुत्त, बुद्ध का एक शिष्य, एक दिन बुद्ध की उपस्थिति में डूब गया और उसने बुद्ध को अपने अंतरतम केंद्र में उतरने दिया वह बुद्धत्व को उपलब्ध हो गया। तत्क्षण बुद्ध ने कहा, 'सारिपुत, अब मेरे पास रुके रहने की कोई जरूरत नहीं अब जाओ दूर-दूर प्रांतो में जाओ बहुत लोग प्यासे हैं। अब तुम्हारे पास पानी है उनकी प्यास बुझाने के लिए।' सारिपुत्त ने देखा चारों तरफ। क्या हुआ? उसने कहा, 'आप क्या कह रहे हैं? मुझे कहीं मत भेजिए।' बुद्ध ने कहा, 'तुम्हें पता नहीं है कि क्या हो गया है। अब तुम्हें मेरी मौजूदगी की जरूरत नहीं है। अब तुम स्वयं एक मौजूदगी हो सकते हो दूसरों के लिए : घटना घट गई है। मैंने कुछ नहीं किया, तुमने कुछ नहीं किया, और बात हो गई है।'
यदि शिष्य में बहुत ज्यादा कर्ता भाव है, तो घटना नहीं घटेगी। यदि गुरु में ज्यादा कर्ताभाव है, तो वह गुरु नहीं है जब शिष्य तैयार होता है खुलने के लिए और सदगुरु होता है सदगुरुतो घटना घट जाती है। यह एक प्रसाद है। यह बिना किसी के कुछ किए ही घटता है। इसीलिए हम भारत में इसे 'प्रसाद' कहते हैं। अचानक परमात्मा उतर आता है, अचानक परमात्मा काम करने लगता
है।
इसीलिए मैं कहता हूं कि मैं काम नहीं करता लोगों पर, और फिर भी मैं शिष्य बनाता हूं।