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पुरुषों की इससे अन्यथा हो नहीं सकता, क्योंकि अस्तित्व एक संतुलन रखता है लेकिन स्त्रियां बहुत चर्चा नहीं करतीं। वे ज्यादा शेखी नहीं बघारतीं। यदि वे उपलब्ध हो जाती हैं तो वे उसका आनंद लेती हैं। वे उसे लेकर ज्यादा शोरगुल नहीं करतीं।
पुरुष बिलकुल अलग तरह के होते हैं। यदि वे कुछ पा लेते हैं, तो वे बहुत शोर मचाते हैं इस बात को लेकर; वे इस विषय में खूब चर्चा करते हैं। और समाज चलता है पुरुषों द्वारा। जब कोई पुरुष बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, तो बाकी पुरुष खूब विज्ञापन करते हैं इस बात का। जब कोई स्त्री बुद्धत्व को उपलब्ध होती है, तो कोई फिक्र नहीं करता, क्योंकि समाज स्त्रियों से नहीं चलता है। वे शासक नहीं हैं।
पुरुष मूल रूप से ज्यादा बहिर्मुखी होता है स्त्री की अपेक्षा। स्त्री स्वयं में सीमित रहती है, या ज्यादा से ज्यादा अपने परिवार तक सीमित रहती है। उसे चिंता नहीं होती वियतनाम की, उसे चिंता नहीं होती रिचर्ड निक्सन की-इतने दूर की बात उसके लिए कोई महत्व नहीं रखती। वह आने वाले पीढ़ियों की, और तमाम बातों की कोई चिंता नहीं करती। वह अपने घर में प्रसन्न रहती है, वही उसका अपना छोटा सा संसार होता है। असल में वह चाहती ही नहीं कि कोई दखलंदाजी करे। वह अपने संसार में रहना चाहती है।
जब कोई स्त्री बुद्धत्व को उपलब्ध होती है, तब फिर उसका ढंग वही होता है : वह सारे संसार को उपदेश देने नहीं जाती। वह बात उसके स्वभाव में ही नहीं होती। वह शिष्य नहीं बनाती, संगठित धर्म निर्मित नहीं करती। वह बात उसके लिए स्वाभाविक नहीं है। वह खुश होती है, वह आनंदित होती है। वह नाच सकती है, वह गा सकती है। लेकिन वह अपने घर में शाति से रहती है। वह कोई चिंता नहीं लेती संसार की। स्त्री गुरु नहीं बनती। जितने पुरुष बुद्धत्व को उपलब्ध होते हैं, उतनी ही स्त्रियां भी उपलब्ध होती हैं। लेकिन स्त्री में गुरु बनने के गुण नहीं होते। यह बात समझने जैसी है।
स्त्री में पूरे गुण हैं शिष्य बनने के। समर्पण उसके लिए आसान है। समर्पण स्वाभाविक है; स्त्रैण चित्त का हिस्सा है। समर्पण आसान है; समर्पण सरल है। स्त्री एक अच्छी शिष्य हो सकती है। और तुम सदा पाओगे : जहां चार शिष्य होंगे, उनमें तीन स्त्रियां होंगी। सारे संसार में यही अनुपात होता है। महावीर के पास चालीस हजार शिष्य थे-उनमें तीस हजार स्त्रियां थीं। यही अनुपात रहा है बुद्ध के निकट। तुम जरा जाओ किसी चर्च में, मंदिर में, और गिन लो संख्या-तुम सदा तीन और एक का अनपात पाओगे। असल में सभी धर्म स्त्रियों द्वारा ही चलते हैं, लेकिन वे शिष्य होती हैं।
समर्पण उनके लिए आसान है, क्योंकि समर्पण पैसिव है। यदि तुम किसी स्त्री के चरणों में समर्पण कर दो तो वह घबड़ाहट और बेचैनी अनुभव करेगी। यदि कोई पुरुष आकर गिर उसके चरणों में, तो वह कभी प्रेम न कर पाएगी इस पुरुष से। वह व्यक्ति पुरुष जैसा नहीं लगता। करके देखो, जरा पीछे पड़ जाओ किसी स्त्री के। जितना ज्यादा तुम उसके पीछे भागते हो, और जितनी ज्यादा तुम विनती करते हो, और जितना ज्यादा तुम उसके चरणों में गिरते हो-उतना ही ज्यादा