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बच्चा चुप रहता है, बोलना नहीं सीखा होता, तब तक बच्चा वह सब चीजें देखता है जिन्हें कोई संत देखता है, जिन्हें कोई बुद्ध पुरुष देखता है। ठीक उसी तरह ही देखता है। बच्चा करीब-करीब संत ही होता है। लेकिन वह केवल एक समय तक ही ऐसा रहता है। यदि बच्चा छह महीने तक, नौ महीने तक, एक साल तक नहीं बोलता-तो उस समय तक बच्चा आभा मंडल देखेगा, अनुभव करेगा गहराई से। जब बच्चा बोलना शुरू कर देता है, तो वह बच्चा फिर बच्चा नहीं रहता। फिर बच्चा संसार का हिस्सा हो जाता है; भाषा के, बुदधि के, मन के संसार का हिस्सा हो जाता है। तब धीरे-धीरे वे गुण तिरोहित होने लगते हैं।
भारत में हमारे पास एक मान्यता है, और बड़ी सच्ची बात छिपी है उसमें। भारत में ऐसा कहा जाता है कि छह महीने तक बच्चे को पिछले जन्म की स्मृति रहती है। यह बात सच है, क्योंकि छह महीने तक बच्चा बहुत शांत और मौन रहता है और उसका बोध बहुत गहरा होता है। फिर रोज-रोज संसार और- और ज्यादा जुड़ता जाता है उसके साथ हम सिखाते हैं उसे, संस्कारित करते हैं उसे तो बच्चा समाज का हिस्सा ज्यादा हो जाता है और अस्तित्व से उसका संबंध टूटता जाता है। बच्चा संसार में खो जाता है। यही है आदम का गिरना. ज्ञान का फल चख लिया जाता है। ज्ञान के श्रृक्ष का फल तब चखा जाता है जब बच्चा बोलना शुरू करता है।
फिर दोबारा अगर तुम उस निर्दोषता को पाना चाहते हो, उसे फिर आविष्कृत करना चाहते हो, तो तुम्हें मौन सीखना होगा-इसीलिए तो मौन के लिए, ध्यान के लिए इतना ज्यादा जोर है। तुम्हें फिर भाषा को भूलना होगा। भीतर की सब बातचीत, भीतर का सारा शोरगुल बंद करना होगा। तुम्हें फिर निर्दोष, भाषाविहीन होना होगा-भीतर कोई शब्द न रहें, शुद्ध अंतस सत्ता मात्र रह जाए, फिर से तुम बच्चे हो जाओ। स्मरण रखना, जीसस बार-बार कहते हैं, 'जो बच्चों की भांति हैं केवल वही प्रवेश करेंगे मेरे प्रभु के राज्य में।'
अंतिम प्रश्न:
ऐसा क्यों है कि बुद्धत्व को उपलब्ध पुरुषों की अपेक्षा बुद्धत्व को उपलब्ध स्त्रियों का हमें बहुत कम पता है?
इसका बुनियादी कारण यह है कि आत्मप्रशंसा में पुरुष बहुत कुशल हैं, स्त्रियां नहीं। बहुत स्त्रियां
बुद्धत्व को उपलब्ध हई हैं। बुदधत्व को उपलब्ध स्त्रियों की संख्या ठीक उतनी ही है जितनी कि