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भी नितांत मूढ़ता की बात है हर चीज जो है, मिट सकती है हर चीज जो जन्म लेती है, मर सकती है हर चीज जो आरंभ होती है, समाज हो सकती है।
तो प्रामाणिक रहना और सजग रहना । यदि प्रेम समाप्त हो चुका हो, तो उस स्त्री के साथ रहना पाप है तब यदि तुम सोते हो उस स्त्री के साथ तो तुम पापी हो तब यह एक तरह से वेश्यावृत्ति है। स्त्री तुम्हारे साथ रहती है क्योंकि कहीं और जाने की जगह नहीं है। अब वह तुम्हारे साथ केवल
इसलिए है क्योंकि आर्थिक रूप से वह तुम पर निर्भर है।
लेकिन फिर वेश्यावृत्ति क्या है? वह आर्थिक सौदा ही है। अब प्रेम तो रहा नहीं। यदि तुम किसी वेश्या के पास जाते हो और वह तुम्हारे प्रेम में पड़ जाती है और पैसे लेने से इनकार कर देती है, तो फिर वह वेश्या न रही। वेश्या का जन्म होता है पैसे के साथ। जब प्रेम की बजाए पैसा जोड़ता है दो व्यक्तियों को, तो वह वेश्यावृत्ति है।
यदि तुम बिना प्रेम के किसी स्त्री के साथ रहते हो और स्त्री बिना प्रेम के तुम्हारे साथ रहती है, केवल एक आर्थिक व्यवस्था है कि मुश्किल होगी; किधर जाओ, क्या करो, बड़ी असुरक्षा है! तो चिपके रहो, और नाराज होओ, एक-दूसरे की जिंदगी नर्क बना दो, और लगातार लड़ते-झगड़ते रही लेकिन फिर भी साथ रहो, यह तुम्हारा कर्तव्य है- तुम बहुत खतरनाक व्यक्ति हो।
और इस वेश्यावृत्ति से किस प्रकार के बच्चे पैदा होंगे? तुम केवल स्वयं को ही नष्ट नहीं कर रहे, तुम आने वाली पीढ़ियों को भी नष्ट कर रहे हो। वे बच्चे तुम्हारे बीच बड़े होंगे-दों व्यक्ति निरंतर लडझगड़ रहे हैं, निरंतर संघर्ष में रह रहे हैं। और जो बच्चे पैदा होंगे, सदा संघर्ष में रहेंगे। उनका एक हिस्सा मां से संबंधित रहेगा, एक हिस्सा पिता से, और गहरे में निरंतर एक गृह-युद्ध छिड़ा रहेगा। वे सदा द्वंद्व में रहेंगे।
जब तुम आते हो मेरे पास और कहते हो, 'मैं उलझन में हूं...।' अभी कुछ दिन पहले एक संन्यासी आया और उसने कहा, मैं समर्पण करना चाहता हूं लेकिन मैं समर्पण नहीं भी करना चाहता!' अब क्या करो इस आदमी के साथ? और वह कहता है, मेरी मदद करें।' वह समर्पण करना चाहता है और समर्पण नहीं भी करना चाहता है। एक हिस्सा कहता है, समर्पण करो, एक हिस्सा कहता है, 'नहीं। यह है खंडित व्यक्तित्व, स्कीजोफ्रेनिक । लेकिन करीब-करीब प्रत्येक व्यक्ति ऐसी ही स्थिति में है। कहा से आता है यह खंडित व्यक्तित्व?
यह खंडित व्यक्तित्व सदा संघर्ष में रहने वाले माता-पिता से आता है। बच्चा कई बार मां जैसा अनुभव करता है, क्योंकि वह दोनों को अनुभव करता है। वह संसार में दोनों के द्वारा आया है। उसके शरीर के आधे कोशाणु पिता से संबंध रखते हैं; आधे कोशाणु मां से संबंध रखते हैं। अब वे द्वंद्व में रहते हैं। वह निरंतर गृहयुद्ध में रहेगा वह कभी चैन से न बैठेगा, शांत न होगा कुछ भी वह करेगा,