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एक हिस्सा कहता रहेगा, 'व्यर्थ है यह। मत करो ऐसा।' यदि मां वाला हिस्सा कहता है, 'करो', तो पिता वाला हिस्सा कहता है, 'नहीं'। शायद बहुत जोर से न भी कहे। पिता कभी बहुत जोर से नहीं कहते, लेकिन पिता वाला हिस्सा 'नहीं' में सिर हिलाएगा। यदि पिता वाला हिस्सा कहता है, 'हां', तो मां वाला हिस्सा कहता है-निश्चित ही बहुत जोर से कहता है-'नहीं।
मुल्ला नसरुद्दीन का बेटा एक लड़की के प्रेम में पड़ गया। वह घर आया। उसने नसरुद्दीन से पूछा-चुपके से अकेले में पूछा उससे–कि क्या करें? पिता ने उसके कान में फुसफुसा कर कहा, 'यदि तुम सच में ही उस लड़की से प्रेम करते हो तो जाओ और अपनी मां से कहना कि पिताजी ने मना किया है, कि पिताजी तो इस बात के बिलकुल खिलाफ हैं। और तुम्हारी मां के सामने मैं कहूंगा, ऐसा कभी नहीं होने दूंगा मैं। तब तो सुनिश्चित ही है कि तुम्हारा विवाह हो जाएगा।'
बड़ी राजनीति चलती है। और प्रत्येक संवेदनशील बच्चा जिंदगी की चालबाजिया सीख लेते
है, और फिर वह उन्हें पूरे जीवन भर चलता रहेगा। वह खंडित रहेगा, और जब भी वह किसी स्त्री
को घर लाएगा, तो वह पिता की भूमिका निभाना शुरू कर देगा और स्त्री मां की श्रइमका निभाने लगेगी। और यही कहानी चलती रहती है... और संसार और-और पागलपन में उतरता जाता है।
यह सारी व्यर्थ की बकवास इसीलिए निर्मित हो गई है क्योंकि तुम्हें गलत बातें सिखाई गई हैं। मैं तुम्हें केवल एक जिम्मेवारी सिखाता हं : वह है तुम्हारे अपने जीवन के प्रति जिम्मेवारी। यह बात बड़ी खतरनाक लगेगी। यह ऐसी लगेगी जैसे कि मैं अराजकता फैलाने की, अव्यवस्था फैलाने की कोशिश कर रहा हूं। ऐसा मैं कुछ नहीं कर रहा हूं। अराजकता तो तुमने पहले से ही बनाई हुई है, उसमें और अराजकता नहीं लाई जा सकती। मैं कोशिश कर रहा हूं एक व्यवस्था लाने की, लेकिन स्वतंत्रता से आई व्यवस्था, अंतर- अनुशासन के रूप में आई व्यवस्था बाहर से थोपी गई, जबरदस्ती लादी हुई व्यवस्था नहीं।
नौवां प्रश्न :
क्या बच्चों को आभा-मंडल दिखाई देते हैं?
,लेकिन केवल तब तक दिखाई देते हैं जब तक उन्होंने बोलना शुरू नहीं किया होता। जब बच्चा
बोलने लगता है तो चीजें खोने लगती हैं। बोलते ही बच्चा समाज का हिस्सा बन जाता है। जब तक