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संभव नहीं है। सार्वभौमिक नियम के विरुद्ध होने की कोई संभावना कैसे हो सकती है? ऐसी कोई संभावना नहीं है। ही, यह हो सकता है कि लोगों को नियम मालूम न हो।
जैसे-जैसे तुम ज्यादा गहरे उतरते हो शुद्धता में और पूर्णता में, सिद्धियां संभव हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, यदि तुम स्थूल शरीर से अपने सूक्ष्म शरीर को, एस्ट्रल बॉडी को बाहर ला सको तो तुम बहुत सी बातें कर सकते हो, जो कि चमत्कार जैसी लगेंगी। तुम लोगों से मिलने जा सकते हो। वे तुमको देख सकते हैं, लेकिन वे तुमको छू नहीं सकते। तुम उनसे बात भी कर सकते हो अपने सूक्ष्म प्रक्षेपण, एस्ट्रल प्रोजेक्शन द्वारा। तुम स्वस्थ कर सकते हो लोगों को। यदि तुम सच में ही शुद्ध हो, तो केवल तुम्हारा संस्पर्श, हाथों का स्पर्श, और चमत्कार हो जाएगा। स्वास्थ्य देने वाली एक शक्ति छाई रहेगी तुम्हारे चारों ओर जहां भी तुम जाओगे, लोग ठीक होने लगेंगे। ऐसा नहीं कि तुम कुछ करते हो। वह शुद्धता ही.. तुम अनंत शक्तियों के माध्यम हो जाते हो।
लेकिन तुम्हें भीतर की ओर मुड़ ना है, तुम्हें अपने आत्यंतिक केंद्र को खोज लेना है।
'तपश्चर्या अशुद्धियों को मिटा देती है। और इस प्रकार हुई शरीर तथा इंद्रियों की परिपूर्ण शुद्धि के साथ शारीरिक और मानसिक शक्तियां जाग्रत होती हैं।'
और सब से बड़ी शक्ति जो तुम में जाग्रत होती है वह है मृत्युविहीनता की। ऐसा नहीं है कि तुम्हारे पास कोई सिद्धात है, कोई शास्त्र है, कोई दर्शन है इस बात का कि तुम अमर हो। नहीं, अब तुम्हारे पास एक अनुभूति है। अब यह तुम्हारा अनुभव है-अब तुम इसे जानते हो। अब यह बात कोई सिद्धात नहीं है; यह तुम्हारा अपना अनुभव है कि कहीं कोई मृत्यु नहीं है। यह शरीर बिखर जाएगा अपने तत्वों में, लेकिन तुम्हारी चेतना नहीं बिखर सकती है। मन छूट जाएगा, विचार छूट जाएंगे, शरीर बिखर जाएगा अपने तत्वों में-लेकिन 'तुम', वह साक्षी बना रहेगा।
तुम जानते हो यह, क्योंकि अब तुम देख सकते हो अपने शरीर को दूर खड़े होकर, अलग हट कर। तुम अपने शरीर को देख सकते हो अपने से अलग। तुम शरीर के बाहर आ सकते हो लगे र उसको देख
आस-पास चक्कर लगा सकते हो। अब तुम जानते हो कि जब तम मरोगे तो शरीर पीछे पड़ा रह जाएगा, लेकिन तुम नहीं। अब तुम देख सकते हो मन को यंत्र की भांति काम करते हुए, एक बायो-कंप्यूटर की भांति काम करते हुए। तुम द्रष्टा हो-तुम मन नहीं हो। अब शरीर और मन अपना काम करते रहते हैं, लेकिन तुम उनसे तादात्म्य नहीं बनाते।
यह सबसे बड़ा चमत्कार है जो किसी मनुष्य को घट सकता है : कि उसे यह बोध हो जाए कि वह मृत्यु के पार है। तब मृत्यु का भय मिट जाता है, और मृत्यु के भय के मिटते ही सारे भय मिट जाते हैं। और जब सारे भय मिट जाते हैं, तो प्रेम का उदय होता है। जब कहीं कोई भय नहीं रह जाता, तो प्रेम पैदा होता है, केवल तभी प्रेम पैदा होता है। कैसे प्रेम खिल सकता है भय से जकड़े हुए मन में? तुम मित्र बना सकते हो, तुम संबंध निर्मित कर सकते हो, लेकिन तुम भय के कारण ही संबंध बनाते