________________
सोए-सोए भी सोच सकते हो, सजगता की कोई जरूरत नहीं होती। असल में तुम निरंतर सोचते रहते हो जरा भी सजग हुए बिना। सोचना जारी रहता है-हमेशा। जब तुम रात गहरी नींद सोए होते हो, तब भी सोचना जारी रहता है; मन अपना भीतरी वार्तालाप जारी रखता है। यह यंत्रवत चलता रहता
पूरब का मनोविज्ञान कहता है, 'सजग रहो। क्रोध का विश्लेषण मत करो, उसकी कोई जरूरत नहीं है। बस उसे देखते रहो, लेकिन देखना सजगता के साथ। सोचने मत लगना।' असल में यदि तुम सोचने लगते हो, तो सोचना क्रोध को देखने में एक बाधा बन जाएगा। तब सोच –विचार ढंक लेगा क्रोध को। तब सोच-विचार बादल की भांति उसे आच्छादित कर लेगा, स्पष्टता खो जाएगी। बिलकुल मत सोचो। निर्विचार अवस्था में रहो, और केवल देखते रहो।
जब तुम्हारे और क्रोध के बीच विचार की हलकी सी तरंग भी नहीं बचती तो क्रोध से साक्षात्कार होता है। तुम उसका विश्लेषण नहीं करते। तुम उसके स्रोत तक पहुंचने की फिक्र नहीं करते, क्योंकि स्रोत है अतीत में। तुम उसके बारे में कोई निर्णय नहीं लेते, क्योंकि जिस क्षण तुम कोई निर्णय लेते हो, सोचना शुरू हो जाता है। तुम कोई प्रतिज्ञा नहीं करते कि मैं ऐसा नहीं करूंगा, क्योंकि प्रतिज्ञा तुम्हें भविष्य में ले जाती है। सजगता के साथ तुम क्रोध की भाव-दशा में रहते हो-एकदम अभी और यहीं। तुम्हें उसे बदलने में कोई रुचि नहीं होती, तुम्हें उसके बारे में सोचने में कोई रुचि नहीं होती। तुम्हें रुचि होती है उसे सीधे-सीधे, प्रत्यक्ष रूप से देखने में। तब यह आत्म-स्मरण है।
और यही इसका सौंदर्य है कि यदि तुम क्रोध को ठीक से देख लो, तो वह तिरोहित हो जाता है। न केवल इस क्षण क्रोध तिरोहित हो जाता है तुम्हारे भर आख देखने से उसका खो जाना तुम्हें कुंजी दे जाता है कि संकल्प का उपयोग करने की कोई जरूरत नहीं। भविष्य के लिए निर्णय लेने की कोई जरूरत नहीं, और उसके मल-स्रोत तक जाने की कोई जरूरत नहीं जहां से वह आता है। वह बात ही व्यर्थ है। अब तुम्हारे हाथ कुंजी आ जाती है. देखते रहो क्रोध को, और क्रोध मिट जाता है। और यह देखना हमेशा तुम्हारे हाथ में है। जब भी क्रोध आए, तुम देख सकते हो; तब यह देखना और- और गहरा होता जाता है।
देखने की तीन अवस्थाएं हैं। पहली, जब क्रोध आकर जा चुका होता है। तुम बस पूंछ देखते हो जाते हुए-हाथी तो निकल गया होता है, केवल पूंछ होती है। क्योंकि जब क्रोध था, तो असल में तुम इतने ग्रस्त थे उससे कि तुम उसे देख नहीं सकते थे। जब क्रोध करीब-करीब जा चुका होता है, निन्यानबे प्रतिशत खो चुका होता है-केवल एक प्रतिशत, उसका अंतिम हिस्सा खो रहा होता है, विलीन हो रहा होता है कहीं सुदूर क्षितिज पर-तब तुम उसके प्रति होशपूर्ण होते हो : यह है सजगता की पहली अवस्था। ठीक है, लेकिन पर्याप्त नहीं।