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मैं बिलकुल बेकार हो गया हूं अब मैं अपनी आर्थिक स्थिति के संबंध में क्या करूं? क्या मैं दूसरों के खर्च पर ही जीऊं?
अगर तुम सच में बिलकुल बेकार हो गए हो, तो तुम उपलब्ध हो गए; अब पाने को कुछ बचा
नहीं। और अगर तम सच में बिलकल बेकार हो गए हो, तो फिर तम परवाह नहीं करोगे : आर्थिक स्थिति के विषय में। जब भी कोई बिलकुल बेकार हो जाता है तो अस्तित्व ध्यान रखता है। अभी भी, उपयोगिता के संसार की कोई न कोई बात जरूर तुम्हारे मन में है; इसीलिए यह प्रश्न उठ रहा है। अगर तुम सच में ही बेकार हो गए होते, तो तुम फिक्र न करते इसकी; तुम अगले क्षण रहोगे या नहीं रहोगे, इस बात की तुम्हें कोई चिंता न होती, अगर तुम सच में बेकार हो गए होते।
तुम क्यों फिक्र करते हो? यदि अस्तित्व को तुम्हारी जरूरत होगी अपनी आख-मिचौनी की लीला के लिए, तो वह रखेगा ध्यान। इसीलिए जीसस अपने शिष्यों से कहते थे, 'जरा बगीचे में खिले लिली के फूलों को तो देखो : वे कोई कठिन श्रम नहीं करते, उन्हें कोई चिंता नहीं कल की-और जितना सम्राट सोलोमन अपने पूरे ऐश्वर्य में सुंदर रहा होगा, वे उससे भी ज्यादा सुंदर हैं।' जीसस कहते थे, 'कल की मत सोचो।'
एक बार तुम सच में ही बेकार हो जाते हो, तो तुम समर्पण कर देते हो परमात्मा को। और अगर तुम समर्पित हो जाते हो, तो तुम नहीं पूछोगे, 'क्या मैं दूसरों के खर्च पर ही जीऊं?' फिर दसरा कौन है? फिर कोई दूसरा नहीं है। तब तुम्हारी जेब दूसरों की जेब है और दूसरों की जेबें तुम्हारी जेब हैं। दूसरा दूसरा है अहंकार के कारण क्योंकि 'मैं' है इसीलिए दूसरा है। यदि मैं ही न रहा तो कौन दूसरा होगा?
मैं वर्षों से दूसरों के खर्च पर जी रहा हूं; और मैं उन्हें धन्यवाद भी नहीं कहता हूं। क्योंकि अपने को ही धन्यवाद देने का अर्थ क्या है? मूढ़ता की बात लगेगी। मैं अपने ढंग से आनंद मना रहा हूं और अगर सारे अस्तित्व की मर्जी है कि मैं यहां रहूं तो मैं यहां रहूंगा। अगर उसकी मर्जी होगी कि मैं न रहं कि मेरी कोई जरूरत नहीं है, तो वह मझे उठा लेगा। यह उसकी चिंता है। और अगर वह चाहता है कि मैं यहां बना रहूं तो वह किसी के मन में यह विचार डाल देगा कि मुझे कुछ दिया जाए। यह उसके निर्णय की बात है। और अगर तुम मुझे कुछ देते हो, तो वही दे धन्यवाद। मैं क्यों दूं तुम्हें धन्यवाद? मैं बीच में कहीं नहीं आता। मैंने कभी किसी को धन्यवाद नहीं दिया, क्योंकि यह बात मूढ़ता की लगती है।
मैं जिस बात से आनंदित होता हूं वह मैं करता हूं। अगर किन्हीं को इससे लाभ मिलता हो, तो उन्हें एहसान मानने की कोई जरूरत नहीं। यह मेरा आनंद है। मैं बोलता हूं तुम से; यह मेरा आनंद है। ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा हूं-यह मेरा आनंद है। अगर तुम मेरी