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ज्यादा स्वच्छ, ज्यादा निर्भार, ज्यादा प्रसन्न अनुभव करोगे, और शरीर बेहतर ढंग से काम करने लगेगा, क्योंकि अब वह निर्भर है।
लेकिन उपवास की जरूरत केवल तभी होती है यदि तुम गलत ढंग से भोजन करते रहे हो। यदि तुम गलत ढंग से भोजन नहीं करते रहे हो, तो उपवास की कोई जरूरत नहीं है। उपवास की जरूरत केवल तभी होती है, जब तुमने कुछ गलत किया होता है शरीर के साथ - और हम सभी गलत ढंग से भोजन लेते हैं।
मनुष्य भटक गया है। कोई जानवर मनुष्य की भांति भोजन नहीं करता है, प्रत्येक जानवर का अप भोजन होता है। यदि तुम भैंसों को ले जाओ बगींचे में और उन्हें वहां छोड़ दो, तो वे सिर्फ एक खास तरह का घास ही खाएंगी। वे हर चीज और कोई भी चीज नहीं खाने लगेगी- बहुत चुन कर खाती हैं। अपने भोजन के प्रति उनकी एक सुनिश्चित संवेदनशीलता होती है। मनुष्य बिलकुल भटक गया है, अपने भोजन के प्रति वह बिलकुल संवेदनशील नहीं है। वह हर चीज खाता रहता है। असल में तुम कोई ऐसी चीज नहीं खोज सकते जो मनुष्य द्वारा कहीं न कहीं खाई न जाती हो। कुछ स्थानों में चीटियां खाई जाती हैं, कुछ स्थानों में सांप खाए जाते हैं, कुछ स्थानों में कुत्ते खाए जाते हैं। मनुष्य हर चीज खाता है। मनुष्य तो बस विक्षिप्त है। वह नहीं जानता कि किस चीज का उसके शरीर के साथ मेल बैठता है और किस चीज का मेल नहीं बैठता। वह बिलकुल उलझा हुआ है।
स्वभावतः मनुष्य को शाकाहारी होना चाहिए, क्योंकि उसका पूरा शरीर शाकाहारी भोजन के लिए बना है। वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि मनुष्य शरीर का सारा ढांचा यही बताता है मनुष्य को मांसाहारी नहीं होना चाहिए। मनुष्य आया है बंदरों से। बंदर शाकाहारी हैं-पक्के शाकाहारी हैं। यदि डार्विन की बात सच है तो मनुष्य को शाकाहारी होना चाहिए।
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अब कई तरीके हैं यह निर्णय करने के कि जानवरों की कोई प्रजाति शाकाहारी है या मांसाहारी, यह निर्भर करता है अंतड़ियों पर अंतड़ियों की लंबाई पर मांसाहारी जानवरों की आत बहुत छोटी होती है। चीता, शेर-उनकी आत बहुत छोटी होती है, क्योंकि मांस पहले से ही पचाया हुआ भोजन है। उसे पचाने के लिए लंबी आत नहीं चाहिए। पचाने का काम तो जानवर ने ही पूरा कर दिया है। अब तुम खा रहे हो जानवर का मांस । वह पचाया हुआ ही है, लंबी आत की जरूरत नहीं है। मनुष्य की आत लंबी है, इसका अर्थ हुआ कि मनुष्य शाकाहारी प्राणी है। लंबी पाचन क्रिया चाहिए, और बहुत व्यर्थ होता है जिसे बाहर फेंकना होता है।
कुछ
तो यदि आदमी मांसाहारी नहीं है और वह मांस खाता है, तो शरीर बोझिल हो जाएगा। पूरब में, सभी गहरे ध्यानियों ने बुद्ध, महावीर उन्होंने मांसाहार न करने पर बहुत जोर दिया है। अहिंसा की धारणा के कारण नहीं - वह गौण है। लेकिन इस कारण कि यदि तुम सच में ही गहरे ध्यान में उतरना चाहते हो तो तुम्हारे शरीर को निर्भर होने की जरूरत है, स्वाभाविक और प्रवाहापूर्ण होने की