________________
किया; मैंने तुम्हारी शक्ति नष्ट की। यदि तुम अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों तक नहीं पहुंच पाते, तो निश्चित है तुम मुझे कभी माफ नहीं कर पाओगे; लेकिन मेरा कोई लेना-देना नहीं है उससे।
यदि तुम तैयार हो मेरे साथ बहने के लिए-मैं तो बह ही रहा हूं समग्र अस्तित्व के साथ-यदि तुम तैयार हो मेरे साथ बहने के लिए, तो तुम सीख जाओगे समग्र के साथ बहने की कला। तब तुम मुझे भूल सकते हो। अंततः गुरु को छोड़ देना है। गुरु, ज्यादा से ज्यादा एक द्वार हो सकता है, वह मंजिल नहीं है। तुम गुजरते हो उसमें से, और तुम उसे भुला देते हो। तुम बहते हो समग्र के साथ। सदगुरु के पास, सदगुरु की मौजूदगी में, तुम समग्र के साथ बहने की कुशलता सीखते हो। हां, मैं भी सम्मिलित हूं। जब मैं तुम्हें निराश होना सिखाता हूं तो उसमें मैं भी सम्मिलित हूं। मेरे आस-पास कोई आशा मत बना लेना। मैं तुम्हारे व्यक्तिगत सपनों में, तुम्हारी मूढ़ताओं में कभी सहयोगी न होऊंगा।
'बिना आशा के विकास कैसे संभव है?'
आशा के जाने पर ही विकास संभव है। तुम विकसित नहीं हुए क्योंकि तुम आशा करते रहे हो। तुम बचकाने बने रहे, तुम बच्चों जैसे बने रहे। बच्चा अज्ञानी है-वह बनाए सपने, आशाएं, भविष्य तो ठीक है। वह नादान है। जब प्रौढ़ता आती है तो सपनों को छोड़ना ही होता है; या तम सपने देखना छोड़ते हो और प्रौढ़ता आती है। प्रौढ़ता क्या है? प्रौढ़ता है वास्तविकता को देखना।
तो आकांक्षाओं के जगत में जीना छोड़ो। धार्मिक लोग भी, तथाकथित धार्मिक लोग भी सपनों में जीते हैं. वे अपने लिए स्वर्ग की कल्पना करते हैं और दूसरों के लिए नरक की। सपने - अच्छे सपने अपने लिए और बुरे सपने दूसरों के लिए। वे भी बच्चों जैसे हैं।
विकास केवल तभी संभव है, जब कहीं कोई आशा नहीं होती। क्यों? क्योंकि वही उर्जा जो
आशाओं में लगती है, उसी का रूपांतरण करना होता है। वही ऊर्जा विकास के लिए मुक्त होनी चाहिए। इसीलिए सभी बुद्ध पुरुष कहते हैं, 'आकांक्षा मत करो।' इसलिए नहीं कि वे विरुद्ध हैं आकांक्षा के; नहीं। केवल इसलिए कि वे विकास की फिक्र में हैं। और ऊर्जा आकांक्षाओं से मुक्त होनी चाहिए केवल तभी वह आंतरिक विकास बन सकती है।
विकास होता है वर्तमान में और आकांक्षा होती है भविष्य में-वे दोनों कभी मिलते नहीं। तुम विकसित होते हो अभी और यहीं-कल नहीं। वृक्ष अभी विकसित हो रहे हैं, और तुम सोच रहे हो कल विकसित होने की। विकास सदा होता है अभी और यहीं। यदि विकास संभव है, तो वह इस क्षण ही संभव है। यदि वह इस क्षण नहीं हो रहा है, तो अगले क्षण कैसे हो सकता है? कहा से आएगा वह? क्या आसमान से गिरेगा? यही क्षण आधार बनेगा अगले क्षण के लिए। आज आधार बनेगा कल के लिए। यह जीवन आधार बनेगा अगले जीवन के लिए। यदि इस क्षण विकास हो रहा है, तो अगला