________________
पदार्थ से, वह अपदार्थ से बना नहीं है। वह बना है नश्वर से, वह अनश्वर नहीं हो सकता है। तुम असंभव की मांग कर रहे हो। असंभव की मांग मत करो।
यही है मोह-भंग होने का अर्थ : योगी सहज ही यह बोध पा लेता है कि शरीर द्वारा क्या संभव है और क्या संभव नहीं है। जो संभव है वह ठीक; जो संभव नहीं है उसकी वह मांग ही नहीं करता। वह क्रोधित नहीं होता शरीर पर। वह घृणा नहीं करता शरीर से। वह हर तरह से देखभाल करता है उसकी, क्योंकि शरीर सीढ़ी बन सकता है, द्वार बन सकता है; वह मंजिल नहीं बन सकता, लेकिन फिर भी वह द्वार बन सकता है।
मोह- भंग उसके अपने शरीर के प्रति-और जब यह मोह- भंग घटित होता है तब एक अनिच्छा उत्पन्न होती है दूसरों के साथ शारीरिक संपर्क में आने के प्रति। तब दूसरों के साथ शारीरिक संपर्क में आने की आवश्यकता धीरे-धीरे शिथिल पड़ जाती है। असल में यही है वह क्षण जब तुम कह सकते हो कि व्यक्ति गर्भ के बाहर आया-उसके पहले नहीं।
कुछ लोग कभी गर्भ के बाहर नहीं आते। मरते क्षण भी दूसरों की मौजूदगी की, संपर्क की, संबंध बनाने की उनकी जरूरत बनी ही रहती है। वे गर्भ के बाहर नहीं आए। शारीरिक रूप से तो वे बहुत पहले ही बाहर आ गए हैं-व्यक्ति अस्सी-नब्बे वर्ष का हो सकता है। तो नब्बे वर्ष पहले वह आ गया था गर्भ के बाहर, लेकिन इन नब्बे वर्षों में भी वह संबंधों में जीता रहा-खोजता रहा, उत्सुक रहा शारीरिक संपर्क के लिए। अपने स्वप्नों में वह फिर-फिर उसी खो गए गर्भ में ही जीया। ऐसा कहा जाता है कि जब भी कोई आदमी किसी स्त्री के प्रेम में पडता है-वह सोचे चाहे कुछ भी, सवाल उसका नहीं है-वह फिर गर्भ में उतर रहा होता है। और शायद यह सच है-मैं कहता हूं 'शायद' क्योंकि यह परिकल्पना अभी वैज्ञानिक रूप से सिदध नहीं हई है कि स्त्री-शरीर में प्रविष्ट होने का इतना आकर्षण, कामवासना का इतना प्रबल आकर्षण, शायद गर्भ में फिर से प्रविष्ट होने का एक सजीटघूट है। कामवासना संभवत: एक तलाश है कि कैसे गर्भ में फिर से प्रविष्ट हों। और मनुष्य ने जो भी ढंग खोजे हैं अपने शरीर को सुख देने के, मनस्विद कहते हैं कि वह कोशिश करता है बाहर एक गर्भ निर्मित करने की। किसी सुखद कमरे को देखना. अगर वह सच में ही सुखद है तो जरूर कुछ न कुछ गर्भ से मिलता-जुलता होगा-ऊष्मा, नरम, कोमल, मखमली-मां की त्वचा का वह अंत-स्पर्श। तकिए, गद्दे-कोई भी चीज तुम्हें सुखद आराम की अनुभुति केवल तभी देती है, जब वह किसी न किसी ढंग से गर्भ से मिलती-जुलती है।
अब पश्चिम में उन्होंने छोटे -छोटे टैंक बनाए हैं, गर्भ जैसे। उन टैंकों में कुनकुना पानी भरा रहता है, ठीक उसी तापमान पर जितना कि मां के गर्भ का तापमान होता है। गहन अंधेरे में व्यक्ति तैरता है उस टैंक में, पूरे विश्राम में, अंधेरे में-बिलकुल गर्भ की तरह। वे उन्हें ' ध्यान-टैंक' कहते हैं। उससे बहुत मदद मिलती है. व्यक्ति बहुत ही शात अनुभव करता है, एक आंतरिक आनंद का अनुभव होता है-तुम फिर से बच्चे हो गए होते हो।