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6-बिना जरूरत के भी आप सदा एक नैपकिन क्यों साथ रखते है?
7-मैं बिलकुल बेकार हो गया हूं, क्या मैं दूसरों के खर्च पर जीऊं?
8-मादक द्रव्यों और ध्यान के बीच क्या संबंध है?
9-आपने कहा कि जीवन एक कहानी है अस्तित्व की मौन शाश्वतता मैं, तो फिर मनुष्य क्या है?
10-शिष्य पर क्रोधित होने पर यदि गुरु अभिनय ही कर रहा है, तो उसका मुस्कुरा कर देखना भी क्या अभिनय ही नहीं है?
पहला प्रश्न:
प्रेमपूर्ण हृदय वाला व्यक्ति स्वार्थी कैसे हो सकता है?
प्रम सबसे बड़ा स्वार्थ है दुनिया में। मौलिक रूप से प्रेम होता है स्वयं के प्रति प्रेम। यदि तुम
स्वयं से प्रेम करते हो, केवल तभी तुम किसी दूसरे से प्रेम कर सकते हो। यदि तुम स्वयं से प्रेम नहीं करते, तो किसी दूसरे से प्रेम करना करीब-करीब असंभव ही होता है। प्रेम की गुणवत्ता तुम्हारे भीतर होनी चाहिए केवल तभी वह सुगंध किसी और तक पहुंच सकती है। यदि तुम स्वयं को प्रेम नहीं करते हो तो तुम केवल दिखावा कर सकते हो दूसरों से प्रेम करने का। तुम्हारा प्रेम नकली ही होगा, एक झूठ होगा, एक प्रवंचना होगा। सौ में से निन्यानबे मौकों में यही हो रहा है क्योंकि मनष्यता को रोका गया है, संस्कारित किया गया है। प्रत्येक बच्चे को संस्कारित किया गया है कि वह स्वयं को प्रेम न करे, बल्कि दूसरों को प्रेम करे। यह असंभव है। ऐसा हो नहीं सकता; ऐसा चीजों का ढंग नहीं है। हर बच्चे को सिखाया जाता है कि स्वार्थी मत बनो, और वही है होने का एकमात्र ढंग।
ध्यान रहे, यदि तुम स्वार्थी नहीं हो, तो तुम परार्थी भी नहीं हो सकते। स्मरण रहे, यदि तुम स्वार्थी नहीं हो तो तुम निःस्वार्थी भी नहीं हो सकते। केवल एक अत्यंत स्वार्थी व्यक्ति ही निःस्वार्थी हो सकता है। लेकिन यह बात ठीक से समझ लेनी है, क्योंकि यह विरोधाभासी मालूम पड़ती है।