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समझ ली है यह बात कि यदि तुम उदास, दुखी और निराश हो, सदा ही भारी बोझ लिए चल रहे हो, तो यह कोई रोग नहीं है, यह केवल रोग का लक्षण है। रोग यह है कि तुम गहरे में शरीर से बंधे हो ।
तो सवाल यह नहीं है कि तुम्हारे अंधकार को कैसे दूर किया जाए और कैसे तुम्हें सुखी किया जाए; सवाल इसका नहीं है। सवाल इसका है कि शरीर में तुम्हारे तादात्म्य को तोड़ने में तुम्हें कैसे मदद मिले, कैसे तुम्हारी मदद की जाए कि तुम्हारा शरीर के साथ तादात्मय और – और कम होता जाए ।
रोज मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, हम उदास हैं, दुखी हैं रोज सुबह ऐसा लगता है कि फिर एक निराश दिन शुरू हुआ। किसी भांति हम स्वयं को बिस्तर से बाहर घसीटते हैं; कोई आशा नहीं होती। हम जानते हैं, हमने जिंदगी जीयी है.. वही पुनरुक्ति है दुखों की! तो करें क्या? क्या आप हमें कोई उपाय बता सकते हैं जिससे कि हम स्वयं को उदासी के बाहर ला सकें?'
सीधे - सीधे तो कुछ भी नहीं किया जा सकता, केवल परोक्ष रूप से ही कुछ किया जा सकता है। यह लक्षण है; यह कारण नहीं है और अगर तुम लक्षण का इलाज करते हो तो रोग मिटेगा नहीं।
पश्चिमी मनोविज्ञान लक्षणों का इलाज करता रहा है, और योग वह मनोविज्ञान है जो कारण का इलाज करता है। पश्चिमी मनोविज्ञान लक्षणों को देखता है जो कुछ तुम कहते हो, वह तुम्हारे संबंध में एक लक्षण है, वे उसे ही पकड़ लेते हैं और वे उसे मिटाने में लग जाते हैं। वे सफल नहीं हु हैं। पश्चिमी मनोविज्ञान एक प्रवंचना, एक पूर्ण असफलता ही सिद्ध हुआ है।
लेकिन अब वह इतना बड़ा व्यवसाय हो गया है कि मनोवैज्ञानिक इस विषय में कुछ कह नहीं सकते। उनका पूरा जीवन इस पर निर्भर है उनकी बड़ी-बड़ी तनख्वाहें... और उनका व्यवसाय सर्वाधिक सफल व्यवसायों में से एक है। वे इस सचाई को स्वीकार नहीं कर सकते। और वे भलीभांति जानते हैं कि वे किसी की मदद नहीं कर पाए हैं। ज्यादा से ज्यादा वे खींच सकते हैं थोड़ा समय और ज्यादा से ज्यादा वे आशा बंधा सकते हैं, ज्यादा से ज्यादा वे तुम्हारी मदद करते हैं अपने दुखों के साथ समायोजन बनाने में, लेकिन उससे कोई बदलाहट नहीं होती। जैसे-जैसे समय बीतता है, व्यक्ति दुख के साथ राजी हो जाता है, व्यक्ति दुख को स्वीकार कर लेता है। व्यक्ति ज्यादा चिंता नहीं करता उस विषय में, लेकिन बदलता कुछ भी नहीं ।
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अब वे यह जानते हैं। लेकिन अब मनोविज्ञान इतना बड़ा व्यवसाय हो गया है, और हजारों व्यक्ति उस पर जी रहे हैं और वह निश्चित ही बहुत सफल व्यवसाय है, बहुत से न्यस्त स्वार्थ जुड़े हुए हैं उसमें कि कहेगा कौन कि यह सारी बात एक धोखा है, एक प्रवंचना है; किसी को कोई मदद नहीं मिली है? लेकिन ऐसा होना ही था, क्योंकि लक्षण नहीं बदले जा सकते हैं। तुम उन पर रंग-रोगन कर सकते हो, लेकिन गहरे में चीजें वैसी ही बनी रहती हैं। तुम उन्हें नया नाम दे सकते हो, नए लेबल दे सकते हो उससे कुछ अंतर नहीं पड़ता है।