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देखना किसी कुत्ते को; वह देखने जैसी बात है। सर्दियों में भारत में तुम कहीं भी देख सकते हो कुत्तों को धूप सेंकते हुए, धूप का मजा लेते हुए। फिर वह अचानक ही अपनी पूंछ के प्रति सजग हो जाता है कि यह क्या है। इतना आकर्षण, कि वह छलांग लगा देता है। लेकिन पूंछ भी छलांग लगा देती है। निश्चित ही एक कुत्ते के लिए यह बात सहना जरा ज्यादा ही है, यह असंभव है। यह बात चोट करती है कि यह साधारण सी पूंछ और परेशान कर रही है-इतने बड़े कुत्ते को! वह पागल हो जाता है, गोल-गोल घूमता है। तुम देखोगे उसको हांफते हुए, परेशान, और वह विश्वास ही नहीं कर पाता कि यह क्या हो रहा है। वह और इस पूंछ को नहीं पकड़ पा रहा?
अपनी ही पूंछ को पकड़ने वाले कुत्ते जैसा व्यवहार मत करो, और मत सुनो डेल कार्नेगियों को। यही है एकमात्र विधि जो वे तुम्हें सिखा सकते हैं : अपनी ही पूंछ का पीछा करो और पागल हो जाओ। एक दृष्टि है-विधि नहीं-एक दृष्टि से चिंताएं मिट जाती हैं : अगर तुम उनको बस देखते भर रहो, तटस्थता से, अलग-थलग; तुम उन्हें देखते रहो जैसे तुम्हारा कोई लेना-देना न हो। वे हैं; तुम उनको स्वीकार कर लो। जैसे कि बादल तिरते हैं आकाश में : विचार चलते हैं मन में, अंतर-आकाश में। ट्रैफिक चलता है सड़क पर : विचार चल रहे हैं भीतरी सड़क पर। बस, तुम उनको देखते रहते हो।
तुम क्या करते हो जब तुम सड़क के किनारे खड़े बस की प्रतीक्षा कर रहे होते हो? तुम केवल देखते रहते हो। ट्रैफिक चलता रहता है; तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं होता उससे। जब तुम्हारा कुछ लेनादेना नहीं होता, चिंताएं कम होने लगती हैं। तुम्हारा जुड़ाव ही उन्हें ऊर्जा देता है। तुम उन्हें पोषित करते हो; तुम उन्हें शक्ति देते हो; और फिर तुम पूछते हो-उन्हें छोड़े कैसे। और जब तुम पूछते हो कि उन्हें छोड़े कैसे, तो वे तुम पर हावी हो चुकी होती हैं।
गलत प्रश्न मत पूछो। चिंताएं हैं, स्वाभाविक है यह। जीवन इतनी विराट और जटिल घटना है कि चिंताएं होंगी ही। उन्हें देखो। साक्षी बने रहो और कर्ता मत बनो। मत पूछो कि कैसे छोड़े। जब तुम पूछते हो कैसे छोड़े, तो तुम पूछ रहे हो कि क्या करें। नहीं, कुछ नहीं किया जा सकता है। स्वीकार करो उनको-वे हैं। गौर से देखो उनको, प्रत्येक कोण से देखो उनको, कि वे क्या हैं। छोड़ने की बात ही भूल जाओ।
और एक दिन अचानक तुम देखते हो कि केवल ध्यान देने से, केवल देखने से, एक अंतराल पैदा होता है। चिंताएं नहीं हैं; ट्रैफिक रुक गया है; रास्ता खाली है; कोई नहीं गुजर रहा है। उस खालीपन में, उस शून्यता में भगवत्ता प्रकट होती है। उस शून्यता में अचानक तुम्हें झलक मिलती है अपने बुद्धत्व की, अपने आंतरिक वैभव की, और हर चीज एक प्रसाद हो जाती है।
लेकिन तुम चिंताओं को छोड़ नहीं सकते। तुम उनको स्वीकार कर सकते हो; उनको होने दे सकते हो; ध्यान दे सकते हो उन पर-बहुत ही उपेक्षापूर्ण, तटस्थ दृष्टि से, जैसे कि उनका कोई अस्तित्व ही न हो। और वे बस विचारों के बुदबुदे ही हैं, उनका सच में ही कोई अस्तित्व नहीं है। जितने ज्यादा तुम