________________ यही तो लोग कर रहे हैं मंदिरों में. वे वहा जाते हैं और प्रार्थना करते हैं ईश्वर से कि वह बदले। वे लोग बिलकुल कम्युनिस्ट हैं। वे छिपे होंगे धार्मिक वस्त्रों में, लेकिन वे हैं कम्मुनिस्ट। वे क्या प्रार्थना कर रहे हैं? वे कह रहे हैं ईश्वर से, 'ऐसा करो, वैसा मत करो', 'मेरी पत्नी बीमार है, उसको ठीक कर दो।' तुम कह रहे हो अस्तित्व से कि अस्तित्व जिम्मेवार है! तुम शिकायत कर रहे हो; गहरे में तुम्हारी प्रार्थना एक शिकायत ही है। शायद तुम बहुत विनम्रतापूर्वक कह रहे हो, लेकिन तुम्हारी विनम्रता झूठी है। तुम शायद स्तुति कर रहे हो उसकी, लेकिन गहरे में तुम कह रहे हो, 'तुम ही जिम्मेवार हो-अब कुछ करो!' इस दृष्टिकोण को मैं कम्मुनिस्टवादी दृष्टिकोण कहता हूं। कम्मुनिस्टवादी दृष्टिकोण से मेरा मतलब है वह दृष्टिकोण जो कहता है, 'मैं जिम्मेवार नहीं हूं मैं तो शिकार हूं। सारा जीवन जिम्मेवार है।' धार्मिक दृष्टिकोण कहता है, 'जीवन तो केवल प्रतिबिंबित करता है।' जीवन कोई कर्ता नहीं है, वह एक दर्पण है। वह तुम्हारे प्रति कुछ कर नहीं रहा है, क्योंकि वही जीवन बुद्ध पुरुष के साथ अलग ढंग से व्यवहार करता है। जीवन वही है, तुम्हारे साथ वह अलग ढंग से व्यवहार करता है। दर्पण वही है, लेकिन जब तुम आते हो दर्पण के सामने तो वह तुम्हारे चेहरे को प्रतिबिंबित करता है। और यदि तुम्हारा चेहरा बुद्ध पुरुष का चेहरा नहीं है, तो दर्पण क्या कर सकता है? जब बुद्ध पुरुष आते हैं दर्पण के सामने तब दर्पण उनके बुद्धत्व को प्रतिबिंबित करता है। मैं तुम से यह इसलिए कह रहा हं, क्योंकि मेरा भी अनुभव यही है। जब तम्हारा चेहरा बदलता है तो दर्पण में प्रतिबिंब भी बदल जाता है; क्योंकि दर्पण की कोई निर्धारित दृष्टि नहीं है। दर्पण तो बस प्रतिबिंबित कर रहा है। वह अपनी तरफ से कुछ नहीं कहता। वह तो बस प्रतिबिंबित करता है वह तुम्हें ही तुम्हारे सामने प्रकट कर देता है। यदि जीवन में दुख है, तो जरूर तुम ने शुरू की होगी श्रृंखला। यदि हर कोई तुम्हारे विरुद्ध है, तो तुम्हीं ने शुरू की होगी श्रृंखला। यदि हर कोई शत्रुता अनुभव करता है, तो तुमने ही शुरू की होगी श्रृंखला। कारण को बदलों। और कारण तुम हो। धर्म तुमको ही जिम्मेवार ठहराता है और इस तरह धर्म तुमको स्वतंत्रता देता है, क्योंकि तब चुनने की स्वतंत्रता तुम्हारी अपनी है। दुखी होना है या सुखी होना है, यह तुम पर निर्भर करता है। इस बात से किसी दूसरे का कोई संबंध नहीं है। संसार तो वैसा ही रहेगा; तुम शुरू कर सकते हो नृत्य करना, और तब सारा संसार तुम्हारे साथ नृत्य करने लगता है। एक प्रसिद्ध कहावत है कि जब तुम रोते हो तो तुम अकेले रोते हो, जब तुम हंसते हो तो सारा संसार तुम्हारे साथ हंसता है। नहीं, यह बात भी सच नहीं है। जब तुम रोते हो तो सारा संसार प्रतिबिंबित करता है तुम्हारे रोने को। और जब तुम हंसते हो, तो सारा संसार तुम्हारे हंसने को प्रतिबिंबित करता है। जब तुम रोते हो, तब सारा संसार रोता हुआ मालूम पड़ता है। जब तुम उदास होते हो, तब जरा देखना चांद की तरफ-चांद उदास मालूम पड़ता है; जरा देखना तारों की तरफ-वे घोर निराशा में डूबे हुए मालूम पड़ते हैं; देखना नदी की ओर-लगता है कि वह बह नहीं रही है, उदास है, अंधेरे में खोई हुई