________________ पश्चिम से लोग आते हैं मेरे पास, वे बहुत से प्रश्न लेकर आते हैं। जब वे यहां कुछ दिन रह जाते हैं तो वे समझ जाते हैं; तब वे अनुभव करने लगते हैं कि प्रश्न व्यर्थ हैं। तब वे आते हैं और कहते हैं, 'मेरे पास कहने को, पूछने को कुछ नहीं है; बस यहां रहना है।' उन्हें थोड़ा समय लगता है यह समझने में कि मेरे साथ होना ही पर्याप्त है। प्रश्न लेकर आना एक बाधा लेकर आना है। प्रश्नों को साथ लाना, बाधाओं को साथ लाना है। बिना प्रश्नों के आना-कुछ पूछना नहीं, मात्र यहां होना यह है बिना अवरोध, बिना किसी बाधा के आना। तब ऊर्जा बहती है, मिलती है, एक हो जाती है-तुम मेरे अंतर्गर्भ का हिस्सा बन सकते हो, मैं तुममें प्रवाहित हो सकता हूं। लेकिन यदि तुम्हारे पास प्रश्न हैं तो बुद्धि बीच में आ जाती है। जब तुम्हारे पास प्रश्न नहीं होते, तब तुम्हारी अंतस सत्ता उपलब्ध होती है; तुम खुले होते हो, ग्राहक होते हो, संवेदनशील होते हो। जब योगी सुनिश्चित रूप से सत्य में प्रतिष्ठित हो जाता है तब वह बिना कर्म किए भी फल प्राप्त कर लेता है। यह और भी कठिन है। जब योगी सत्य में प्रतिष्ठित हो जाता है: 'सत्यप्रतिष्ठाया।' तुम्हें शुरुआत से ही सजग रहना है कि जब पूरब के शास्त्र 'सत्य' कहते हैं, तो उनका अर्थ केवल सत्य बोलने से नहीं है। नहीं; सत्य में प्रतिष्ठित होने का अर्थ है : प्रामाणिक होना, स्वयं होना-झूठ का, नकलीपन का एक कण भी भीतर न रहे। निश्चित ही, ऐसा व्यक्ति सत्य ही बोलता है, लेकिन उसकी बात नहीं है। ऐसा व्यक्ति जीता है सत्य में-असली बात यह है। पश्चिम में सत्य का अर्थ है सत्य बोलना, बस इतना ही। पूरब में इसका अर्थ है-सत्य होना। सत्य बोलना तो अपने आप चला आएगा, उसका सवाल नहीं है-वह छाया है लेकिन सत्य में प्रतिष्ठित होने का अर्थ है पूरी तरह 'स्वयं' होना, कोई मुखौटा नहीं, कोई पर्सनैलिटी नहीं, बस तुम जैसे हो प्रामाणिक रूप से वैसे होना। यह शब्द 'पर्सनैलिटी' बहुत अर्थपूर्ण है। यह आता है ग्रीक मूल 'पर्साना' से। पर्साना का अर्थ होता है मुखौटा। ग्रीक नाटक के कलाकार मुखौटे का उपयोग करते थे जिन्हें 'पर्सीना' कहा जाता था। वास्तविकता पीछे छिपी रहती है और पर्साना ही लोगों के सामने आता है-चेहरे के रूप में। तो बिना किसी ओढ़े हुए व्यक्तित्व के, बस अपने मौलिक स्वरूप में.. झेन गुरु कहते हैं : 'अपना चेहरा खोजो-अपना मौलिक चेहरा खोजो।' यही है ध्यान का कुल अर्थ। वे अपने शिष्यों से कहते हैं, 'पीछे लौटो, और खोजो वह चेहरा जो तुम्हारे जन्म से पहले था। वही है सत्य।' तुम्हारे जन्म से पहले!