________________ गया हो या किसी दूसरी स्त्री में रुचि रखता हो या स्त्री छुपे तौर पर प्रेमिका बन गई हो किसी दूसरे की। नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं होता। ऐसा होने की जरूरत ही नहीं रह जाती। लेकिन उन्होंने कोई बड़े वैज्ञानिक या बड़े कवि या बड़े कलाकार या बड़े योद्धा पैदा नहीं किए। नहीं, उन्होंने किसी तरह के कोई बड़े आदमी नहीं पैदा किए। उन्होंने पैदा किए साधारण सीधे-सादे, सहज आदमी। असल में सभी तरह की महानता एक तरह की अस्वाभाविकता है, और कहीं न कहीं काम-ऊर्जा का ही उपयोग करना पड़ता है, क्योंकि वही एकमात्र ऊर्जा है। पतंजलि के समय में लोग सीधे-सादे थे, सहज थे। रेचन की कोई जरूरत न थी : किसी चीज का दमन न था। रेचन के चरण की जरूरत न थी। लेकिन अब हर कोई दमित है। और हर कोई इतने तरीकों से दमित है कि रेचन के कई वर्ष चाहिए, केवल तभी तुम फिर से सहज होओगे। तुमने अचेतन मन में इतना ज्यादा कड़ा-करकट इकट्ठा कर लिया है कि उसे फेंकना जरूरी है। अ मार्ग पर नहीं चल सकते-पहले तम्हें स्वयं को निर्भार करना होगा। तुम्हें ठीक से समझ लेना है. कि समाज की अपनी जरूरतें हैं, देश की अपनी जरूरतें हैं। जरूरी नहीं है कि वे व्यक्ति की भी जरूरतें हों-यही समस्या है। व्यक्ति की जरूरत है कि वह सुखी हो, आनंदित हो, उसे जो छोटा सा जीवन मिला है उसे आनंद से जीए। यह व्यक्ति की जरूरत है, लेकिन यह समाज की जरूरत नहीं है। समाज को इससे मतलब नहीं है कि तुम सुखी हो कि दुखी हो; समाज चाहता है कि तुम उपयोगी हो, समाज चाहता है कि तुम महान सैनिक बनो ताकि समाज की सुरक्षा के काम आओ, समाज चाहता है कि तुम बड़े वैज्ञानिक बनो क्योंकि विज्ञान शक्ति है। समाज की अपनी जरूरतें हैं। और व्यक्ति की जरूरतें बिलकुल भिन्न हैं। एक आदर्श समाज में कोई समाज न होगा केवल व्यक्ति होंगे। एक आदर्श राज्य में कोई राज्य न होगा, कोई शासन न होगा-केवल व्यक्ति होंगे। ज्यादा से ज्यादा एक कामचलाऊ शासन व्यवस्था हो सकती है। उदाहरण के लिए, डाक-व्यवस्था की देख-भाल की जा सकती है किसी केंद्रीय एजेंसी दद्वारा। या रेलवे को संचालित किया जा सकता है एक केंद्रीय एजेंसी दवारा। बस इतना ही। रेलगाड़ियां समय से चलें, डाक-व्यवस्था ठीक से काम करे, बस ऐसी चीजों के लिए सरकार होनी चाहिए। और सरकार को एक नकारात्मक शक्ति होना चाहिए। जब मैं कहता हूं नकारात्मक शक्ति, तो मेरा मतलब है. सरकार को ध्यान देना चाहिए कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के काम में दखल न दे और दूसरे व्यक्ति की स्वतंत्रता में और उसके जीवन में दखल न दे। बस इतना ही। सरकार को अपने नियम नहीं थोपने चाहिए लोगों पर। इतना पर्याप्त है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन जीने की स्वतंत्रता हो, अपना काम करने की स्वतंत्रता हो और कोई दखलंदाजी न करे। अगर कोई दखल दे, तो सरकार बीच में आए, अन्यथा नहीं।