________________ स्वप्न, यह सत्ता उसके हाथ आई है, वह उपभोग करता है उसका। तब तुम उसे गंदा कहने लगते हो। और तुम सदियों से बदलते आ रहे हो राजनीतिज्ञों को-और कुछ भी बदला नहीं। अब स्वयं को बदलों। बहुत हुआ-ऐसे ही बहुत समय हुआ-अब तुम्हें समझ लेना है कि कोई सामाजिक क्रांति क्रांति नहीं हो सकती। ज्यादा से ज्यादा वह तुम्हें एक कामचलाऊ मुक्ति दे सकती है, लेकिन वह कुछ भी नहीं है, किसी मूल्य की नहीं है। जब तक तुम न बदलों, कुछ नहीं बदल सकता। मनुष्य को, व्यक्ति को ही बदलना है। और प्रश्न का दूसरा भाग। तुम सोचते हो कि आजकल, इन दिनों जन्म से लेकर मृत्यु तक हर बात राजनीतिज्ञों द्वारा नियंत्रित, निर्देशित, आदेशित, प्रभावित, प्रशासित और परिचालित की जा रही है। क्या तुम कोई ऐसा समय जानते हो, जब कि ऐसा नहीं था? तुम इसे क्यों कहते हो, 'इन दिनों?' ऐसा सदा ही था; सदा ही मनुष्य को निर्देशित किया गया है, नियंत्रित किया गया है। असल में आजकल तो नियंत्रण इतना मजबूत नहीं है, इसीलिए प्रश्न उठा है। राम के समय में प्रश्न भी नहीं उठ सकता था-नियंत्रण पूरा था। और पीछे जाओ, और इतना नियंत्रण था कि तुम प्रश्न भी नहीं पूछ सकते थे। अब तुम प्रश्न पूछ सकते हो, क्योंकि नियंत्रण थोड़ा शिथिल हुआ है। तुम प्रश्न उठा सकते हो; कम से कम इतनी स्वतंत्रता तो संसार में आई है। और पीछे जाओ तुम, लोगों को और ज्यादा बंधा हुआ पाओगे। अतीत में कभी कोई स्थिति ऐसी नहीं रही है, जैसी कि आज है। अभी तक तो यही सर्वश्रेष्ठ है। अब की घडियों में यह घडी सर्वश्रेष्ठ है जिसे तम जी रहे हो। और ऐसा ही होना भी चाहिए। अतीत कछ बेहतर न था वर्तमान से हो नहीं सकता। अब कम से कम स्वतंत्रता का एक दिखावा तो है संसार में. कम से कम तुम्हें बोलने तो दिया जाता है; कम से कम तुम्हें इजाजत तो है प्रश्न उठाने की। यह बड़ी से बड़ी मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि समझ लेने जैसी है। उदाहरण के लिए, भारत में शूद्रों का, अछूतो का हजारों वर्षों से अस्तित्व है, लेकिन पिछला इतिहास बताता है कि कभी कोई प्रश्न नहीं उठाया गया उनकी गुलामी के विरुद्ध। क्यों? क्योंकि नियंत्रण पूरा था। नियंत्रण इतना पक्का था, संस्कार इतने गहरे थे, कि वे अनुभव भी न कर सकते थे कि वे बंधन में हैं। कौन करेगा अनुभव? कैसे करोगे तुम अनुभव यदि गुलामी परिपूर्ण हो? तुम सोचोगे. यही जीवन है, तुलना करने के लिए किसी और जीवन की कोई संभावना नहीं है। शूद्रों ने स्वीकार कर लिया कि यही एकमात्र संभावना है। वे इस पृथ्वी पर सर्वाधिक भददा जीवन जीए, लेकिन कभी इसके प्रति सजग न हुए। संस्कार बहुत गहरे थे। संस्कारित करने में ब्राह्मण अति कुशल हैं; और वे अति कुशल होंगे ही, क्योंकि वे इस धंधे के सब से पुराने खिलाड़ी हैं। वे इस व्यवसाय को बहुत पहले से जी रहे हैं। कोई और नहीं जानता उतनी तरकीबें जितनी वे जानते हैं। सारे संसार को ब्राह्मणों से सीखना चाहिए कि मन को कैसे संस्कारित किया