________________ क दमन के कारण। इस प्रक्रिया को समझ लेना है। पतंजलि का युग बहुत आदिम था, प्राकृतिक था, नैसर्गिक था; लोग बच्चों की भांति थे, निर्दोष थे। अब हर कोई सभ्य है, सुसंस्कृत है। तुम्हारे भीतर का वह बच्चा दबा दिया गया है, पूरी तरह कुचल दिया गया है। सभ्यता किसी राक्षस की भांति है : वह तुम्हारे भीतर के बच्चे की हत्या कर देती है, उसे मार डालती है। जो भी प्राकृतिक है, विकृत हो चुका है; जो भी प्राकृतिक है, निंदित हो चुका है। इसके कारण हैं। उदाहरण के लिए प्रत्येक संस्कृति, प्रत्येक समाज को बहुत से युद्धों से गुजरना पड़ता है। यदि कामवासना का दमन न हो, तो सेना नहीं बनाई जा सकती। सैनिक को अपनी कामवासना का दमन करना ही पड़ता है, केवल तभी वह ऊर्जा लड़ने की ताकत बनती है। कोई देश अपने सैनिकों को उनकी पत्नियों और प्रेमिकाओं को युद्ध के मोर्चे पर साथ ले जाने की आज्ञा नहीं देता है-सिवाय अमरीका के। और अमरीका हर जगह हारेगा। क्योंकि तब भीतर कोई इकट्ठी दमित ऊर्जा नहीं रहती। एक सैनिक को चाहिए बेचैन ऊर्जा। अगर उसके साथ उसकी प्रेमिका है या पत्नी है, तो वह संतुष्ट है। फिर वह क्यों लड़ेगा? क्या तुमने ध्यान दिया? जब भी तुम कामवासना का दमन करते हो तो ज्यादा क्रोध आता है। जरा जाओ और देखो अपने ऋषि-मुनियों को, अपने तथाकथित साधु-संतो को, और तुम उन्हें सदा क्रोधित ही पाओगे। क्रोध उनकी जीवन-शैली हो गई है, क्योंकि वे कामवासना को दबाते रहे हैं। जब तुम कामवासना को दबाते हो तो ऊर्जा धक्के देती है। अगर तुम एक द्वार बंद कर देते हो तो दूसरा द्वार तुरंत खुल जाता है और वह दूसरा द्वार विकृत ही होगा। पहला प्राकृतिक था। दूसरा द्वार बंद करो, तीसरा खुल जाएगा; वह तीसरा और भी विकृत होगा। और जब तक तुम चौथा खोलोगे, तब तक तुम पागलखाने में पहुंच चुके होगे। सभी समाज काम-ऊर्जा का उपयोग करते हैं; इसीलिए सभी समाज कामवासना के विरुद्ध हैं। अगर प्रत्येक व्यक्ति की कामवासना तृप्त हो जाए, संतुष्ट हो जाए, सुंदर हो जाए, तो कौन परवाह करता है लड़ने की? तुम हिप्पियों को युद्ध पर नहीं भेज सकते हो। केवल इसी कारण कि वे इतने प्रसन्न हैं, इतने नैसर्गिक रूप से जी रहे हैं अपना जीवन। न केवल वे नहीं जाएंगे, बल्कि वे प्रदर्शन करते हैं झंडियां लेकर- 'प्रेम करो, युद्ध नहीं।' और ठीक कहते हैं वे। अगर लोगों को प्रेम करने दिया जाए, तो दुनिया से युद्ध मिट जाएंगे। यह बड़ी जटिल बात है। जैन धर्म जैसा धर्म भी जो कि अहिंसा सिखाता है, वह भी कामवासना का दमन सिखाता है। यह पागलपन है। अगर कामवासना का दमन किया गया तो युद्ध होगा, हिंसा होगी, क्योंकि ऊर्जा जाएगी कहां? अगर सच में ही दुनिया से युद्ध मिटाने हैं तो कामवासना को स्वाभाविक ढंग से जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। लेकिन कोई समाज इसकी आज्ञा नहीं दे सकता,