________________ अब काशी नरेश उलझन में पड़ गया, 'कहीं यह कोई चालाकी न हो। शायद कमाल को रस है इस हीरे में, लेकिन मेरे साथ होशियारी कर रहा है। फिर भी काशी नरेश ने सोचा, 'ठीक है, देखते हैं। तो उसने कहा, 'कहां रख दूं मैं इसको?' कमाल ने कहा, 'फिर आप वही गलती कर रहे हैं। यदि पत्थर ही है तो कोई पूछेगा नहीं कि कहा रख दं इसे। अरे कहीं भी रख दो, झोपड़ी बड़ी है।' काशी नरेश भी पूरी बात को अंत तक देख लेना चाहता था, तो उसने झोपड़ी की छत पर खोंस दिया हीरा और चला आया, भलीभांति जानते हुए कि यह कमाल जरूर वह हीरा निकाल कर रख लेगा। सात दिन बाद वह वापस आया पूछताछ करने के लिए कि क्या हुआ। उसे पक्का था कि अब तक तो हीरा बिक भी चुका होगा। वह वहां पहुंचा, उसने थोड़ी देर इधर-उधर की बातचीत की और फिर कहा, 'उस हीरे का क्या हुआ?' कमाल ने कहा, 'फिर हीरे की बात? और मैंने कह दिया आपसे कि वह एक पत्थर था। और मैं क्यों फिक्र करूं इसकी कि क्या हुआ उसका?' अब तो काशी नरेश ने सोचा, 'यह पक्का धूर्त है। इसने बेच दिया उसे या कहीं छिपा दिया है; तभी तो अब कह रहा है, मैं क्यों फिक्र करूं उसकी?' और फिर कमाल ने कहा, 'लेकिन तुम जहां उसे रख गए थे वहां देख लो। अगर अभी तक किसी ने लिया नहीं होगा, तो वहीं होगा।' और हीरा वहीं रखा हुआ था। यह है सरलता। यह है सहज सादगी। लेकिन कठिन है बात. कोई रह सकता है महल में, और यदि महल नहीं है उसके मन में, तो यह है सहज सादगी। तुम झोपड़ी में रह सकते हो और यदि झोपड़ी तुम्हारे मन में प्रवेश कर जाती है, तो यह सादगी नहीं है। तुम बैठ सकते हो सिंहासन पर सम्राट की भांति, और तुम संन्यासी हो सकते हो। इसी तरह तुम संन्यासी हो सकते हो और तुम नग्न खड़े हो सकते हो सड़क पर, और हो सकता है तुम संन्यासी न हो। चीजें उतनी सीधी-सरल नहीं हैं, जितनी लोग उन्हें समझते हैं। और बाहरी रंग-रूप पर बहुत भरोसा रखना भी नहीं चाहिए, तुम्हें भीतर गहरे में देखना चाहिए। सादा जीवन केवल संतोष के बाद ही संभव होता है, क्योंकि संतोष के बाद तुम्हारी सादगी किसी साध्य को पाने का साधन न होगी; वह केवल जीने का एक गैर-जटिल ढंग होगी, जीने का एक सहज-सरल ढंग होगी। और क्यों सहज-सरल? क्योंकि सहज जीवन ज्यादा प्रसन्नता देने वाला होता है। जितना ज्यादा जटिल होता है तुम्हारा जीने का ढंग, उतने ही ज्यादा तुम दुखी होते हो, क्योंकि तब तुम्हें बहुत सारी चीजों के जोड़-तोड़ बैठाने पड़ते हैं। जितना सहज जीवन होता है, उतना ही ज्यादा आनंद होता है, क्योंकि कोई व्यवस्था नहीं करनी पड़ती। तुम श्वास की भांति जी सकते हों-सहज।