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स्त्री ने धन दिया था सौदे की भांति, वह बंधी थी धन से। धन लौटाया नहीं जा सकता था। लेकिन वह दूसरी स्त्री भी रूपांतरित हई उस सारी घटना को समझ कर कि वे गहने क्यों नहीं लौटाए गए।
तो फिक्र मत करना। मैं क्या करता हूं और क्या नहीं करता हूं-वह तुम्हारे सोच-विचार की बात नहीं है, वह तुम्हारी चिंता का विषय नहीं है। तुम्हारी अपनी ही चिंताएं जरूरत से ज्यादा हैं; तुम्हारी अपनी ही समस्याएं काफी हैं। मेरी फिक्र मत करो। मेरे अपने तरीके हैं। और मुझे सलाह देने की कोशिश मत करो- भूल ही जाओ वह बात। केवल अपने विषय में ही सोचो कि तुम यहां क्यों हो।
और तुम छोटी-छोटी बातो के कारण चूक सकते हो, क्योंकि वे बातें तुम्हारी दृष्टि को अवरुद्ध कर देंगी। ऐसा क्यों?' और 'वैसा क्यों?' यह तुम्हारे सोचने की बात नहीं है। मुझे सब पता है कि क्या हो रहा है। और मैं जो भी कदम उठाता हूं, बहुत सोच-समझ कर उठाता हूं। और अपनी जिंदगी में मैं अपने किए पर कभी पछताया नहीं हं-वही करने जैसा था।
लेकिन वह महिला तो बस कार के संबंध में या मकान के संबंध में, हजार बातो के संबंध में पूछती रहती है। और वह बहुत धनी महिला है, वस्तुत: जरूरत से ज्यादा धनी है-असल में वह अपने धन के बारे में भयभीत है। वह अपनी कंजूसी का बचाव कर रही है। और वह सोचती है कि वह बड़े संगत सवाल पूछ रही है। लेकिन अगर वह यहां रुकी रही तो मैं उसका सुरक्षा कवच तोड़ दूंगा। सवाल सिर्फ यह है कि क्या उसके पास इतना साहस है कि वह कुछ दिन यहां रुक सके? और उसकी कंजूसी को तोड़ना ही होगा, क्योंकि उसे तोड़े बिना वह कभी विकसित नहीं होगी। यदि उसे सचमच भय लगता है तो वह चली जाए, जितनी जल्दी हो सके यहां से चली जाए, क्योंकि जल्दी ही भागने की संभावना भी न रह जाएगी।
ऐसे सवाल पूछो जो तुम्हारे विकास से संबंधित हों-तुम्हारे सवाल, जो तुम्हारे गहन प्राणों से उठ रहे हों और जो उत्तर के लिए प्यासे हों।
तीसरा प्रश्न:
क्या सभी मन एक ही तत्व से बने है-मूढ़ता से?
हा; मन मूढ है। ऐसा कोई मन नहीं जो बुद्धिमान हो। मन बुद्धिमान हो नहीं सकता; मन ही
मूढ़ता है। 'मूढ़ मन' ऐसा कहना ठीक नहीं है; यह एक पुनरुक्ति हुई, क्योंकि 'मूढ़ता' और 'मन' दोनों का अर्थ एक ही होता है।