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स्त्रैण। वह बुद्धिमत्ता अ-मन की होती है। मन है पुरुष, मन है स्त्री-अ-मन इनमें से कुछ नहीं है। अ-मन का कोई लिंग नहीं है। अ-मन एक खुलापन है, खुला आकाश है। वहा सारे द्वैत तिरोहित हो जाते हैं। पुरुष-स्त्री, यिन-यांग, विधायक-नकारात्मक, अस्तित्व-अनस्तित्व-सारे द्वैत खो जाते हैं अ-मन के साथ।
लेकिन इससे पहले कि वह अ-मन उपलब्ध हो, यदि तुम्हें चुनना हो कोई मन, तो पुरुष-मन की बजाय स्त्रैण-मन चुनना क्योंकि पुरुष-मन के साथ आक्रामकता जुड़ी है। संसार में रहने के लिए अच्छा है वह; यदि तुम संसार में सफल होना चाहते हो तो पुरुष-मन की जरूरत है : आक्रामक, जुझारू, सदा लड़ने –झगड़ने को तैयार, सदा प्रतियोगिता में उतरने को तैयार, मरने-मारने और हत्या करने को सदा तैयार-हिंसात्मक, ईर्ष्याल, सदा सतर्क। और ऐसे संसार में रहने के लिए यह ठीक है जहां प्रत्येक व्यक्ति शत्रु है और हर कोई वही पाना चाह रहा है जिसे पाने की तुम कोशिश कर रहे हो... और बड़ा संघर्ष है।
तो यदि तुम इस संसार में सफल होना चाहते हो, तो पुरुष-मन चाहिए। यदि तुम भीतर के संसार में सफल होना चाहते हो, तो स्त्रैण-मन चाहिए। लेकिन वह केवल शुरुआत है, स्त्रैण-मन
केवल एक शुरुआत है। वह अ-मन की ओर जाने की एक सीडी है। असली बात यही है. पुरुष-मन स्त्रैण-मन की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा दर है अ-मन से। इसीलिए स्त्रैण-मन रहस्यमय मालूम पड़ता
है।
असल में तुम किसी स्त्री को जीवन भर प्रेम कर सकते हो, लेकिन तुम कभी उसे समझ न पाओगे। वह एक रहस्य ही बनी रहेगी। उसके व्यवहार के संबंध में कोई भविष्यवाणी नहीं हो सकती। वह विचारों की अपेक्षा भाव-दशाओं से अधिक जीती है। वह मौसम की भांति अधिक है यंत्र की भांति कम। सुबह बदलियां छाई होती हैं और दोपहर बदलियां छंट जाती हैं और धूप निकल आती है। स्त्री को प्रेम करके देखो और तुम जान जाओगे। सुबह बादल घिरे होते हैं और वह उदास होती है, और शीघ्र ही, प्रत्यक्ष में कुछ खास हुआ भी नहीं होता, और बादल छंट जाते हैं और फिर धूप निकल आती है और वह गुनगुना रही होती है।
पुरुष के लिए बिलकुल बेबूझ है यह बात। क्या-क्या बेतुकी बातें चलती रहती हैं स्त्री में? हां, तुम्हें बेतुकी लगती हैं क्यों के लिए चीजों की तर्कसंगत व्याख्या होनी चाहिए। क्यों उदास हो तुम?' तो स्त्री सरलता से कह देती है, 'बस मुझे उदासी पकड़ती है।' पुरुष यह बात नहीं समझ सकता। कोई कारण होना चाहिए उदास होने का। बस, ऐसे ही उदास हो जाना? 'तुम खुश क्यों हो?' स्त्री कहती है, 'बस वह खुशी अनुभव कर रही है। वह भाव-दशाओं द्वारा जीती है। निश्चित ही, पुरुष के लिए कठिन है स्त्री के साथ जीना। क्यों? क्योंकि यदि चीजें तर्कसंगत हों, तो चीजें संभाली जा सकती हैं। यदि चीजें एकदम बेबूझ हों-चीजें अनायास, अकारण आ जाएं और चली