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पतंजलि पर। तुम्हें मुझे सुनना पड़ेगा लाओत्सु पर, तब मैं बोलूंगा पतंजलि पर; और क्योंकि तुम मुझे पतंजलि पर बोलते सुनना चाहते हो, तुम्हें मुझे सुनना होगा लाओत्सु पर।
तुम्हारा पूरा मन चाहता है क्रमिक गति में सोचना। यही मेरा मतलब है पतंजलि से। मैं पतंजलि के विषय में कुछ नहीं कह रहा हूं-गलत अर्थ मत लगा लेना। पतंजलि को सुनने का अर्थ है कि तुम क्रमिक रूप से चलना चाहते हो, धीरे- धीरे, एक-एक कदम। इसका अर्थ है कि तुम स्थगित करना चाहते हो, तैयार होना चाहते हो। पतंजलि का अर्थ है : स्थगित करो, तैयार होओ। याद रखना ये शब्द : पतंजलि और स्थगन, तैयारी। पतंजलि के साथ समय की संभावना है, कल संभव है, भविष्य संभव है। वे तुम से नहीं कह रहे हैं, 'एकदम अभी, बिलकुल अभी छलांग लगा दो।' वे बहुत तर्कसंगत हैं, वैज्ञानिक हैं, कम से चलते हैं नासमझी की बात नहीं करते; समझ की बात करते हैं। तुम उन्हें आसानी से समझ सकते हो; वे वहीं से शुरू करते हैं जहां तुम हो।
लाओत्सु तो एकदम अतयं हैं : कवि जैसे ज्यादा दिखते हैं और वैज्ञानिक जैसे कम; ऐसे ज्यादा मालूम पड़ते हैं कि तुम उनकी बातों का मजा ले सको, लेकिन जो वे कह रहे हैं, उस पर तुम कुछ कर नहीं सकते। कैसे कर सकते हो तुम? अंतर बहुत ज्यादा है।
मैं तुम से पतंजलि के विषय में बात करता हूं ताकि तुम धीरे-धीरे होश जगाओ, सजग हो जाओ;
और मैं बात करता जाता हूं लाओत्सु की भी : कि अगर तुम सचमुच ही पतंजलि को समझ रहे हो तो तुम और ज्यादा तैयार हो जाओगे। पतंजलि तैयार करते हैं-फिर खयाल में ले लेना यह शब्द 'तैयारी'| पतंजलि तैयार करते हैं; वे एक तैयारी हैं। लेकिन यदि तुम पतंजलि को ही सुनते रहते हो, तो
तैयारी और तैयारी और तैयारी ही करते रहते हो, और वह घड़ी कभी नहीं आती जब तुम छलांग लगा दो। यह तो उस आदमी जैसी बात हुई जो हमेशा तैयारी करता रहता है, नक्शे और टाइम-टेबलों को पढ़ता रहता है, और यात्रा पर कभी नहीं जाता। असल में, वही उसका कुल काम हो जाता है, कुल शौक हो जाता है। वह सोचता रहता है जाने के बारे में; वह खरीद लाता है हिमालय से संबंधित पुस्तकें-नक्शे, गाइड, चित्रों वाली किताबें-वह जाकर देख आता है फिल्में, वह बातें करता है उन लोगों से जो हिमालय हो आए हैं और वह तैयारी करता है-वह कपड़े खरीदता है और यात्रा में काम आने वाली चीजें जुटाता है लेकिन वह सदा तैयारी ही करता रहता है और मर जाता है। पतंजलि को सुनने में यह खतरा है : तुम्हें तैयारी की ही आदत पड़ सकती है।
कई लोग हैं-'कई' कहना भी ठीक नहीं, करीब-करीब सभी ही हैं जिन्हें आदत पड़ गई है तैयारी की। वे यह सोच कर धन कमाते हैं कि किसी दिन वे आनंद मनाएंगे; और वे कभी आनंद नहीं मनाते। धीरे-धीरे वे भूल ही जाते हैं आनंद के बारे में और उन्हें धन कमाने की इतनी लत पड़ जाती है कि धन ही लक्ष्य बन जाता है। धन साधन है। और प्रारंभ में उन्हें भी यही खयाल था कि जब धन होगा तो वे आनंद मनाएगे-वे वह सब करेंगे जो वे हमेशा से करना चाहते थे और कर नहीं पाते थे क्योंकि धन नहीं था, जब धन होगा तो वे जी भर कर जीएंगे। लेकिन जब तक धन आता है, तब तक