________________
आखिर पड़ोसी को राजी करना पड़ा। पेड कांट दिए गए, और वह बिलकुल ठीक हो गया; बीमारी दूर हो गई।
लेकिन यह तो आदत से जकड़ जाना है। ऐसा जकड़ जाने की कोई जरूरत नहीं; हर बात समझ के साथ करनी होती है।
तो नियम और आसन हैं शरीर के लिए। संयमित शरीर एक सुंदर घटना है-एक संयमित ऊर्जा, ज्योतिर्मय, और सदा अतिरिक्त ऊर्जा से भरपूर और जीवंत, और कभी भी दीन-हीन और मुर्दा नहीं। तब शरीर का भी अपना बोध है, शरीर का भी अपना विवेक है, शरीर एक नई सजगता से ज्योतिर्मय हो उठता है। फिर प्राणायाम एक सेतु है मन और शरीर के बीच। तुम शरीर को बदल सकते हो श्वास के द्वारा, तुम मन को बदल सकते हो श्वास के द्वारा। उसके बाद प्रत्याहार और धारणा-घर लौटना और एकाग्रता-संबंधित हैं मन के रूपांतरण के साथ। फिर ध्यान एक और सेतु है मन और आत्मा के बीच या मन और अनात्मा के बीच-जो भी तुम कहना चाहो उसे, वह दोनों ही है। ध्यान सेतु है समाधि का।
तुम्हारे चारों तरफ समाज है; समाज से तुम तक एक सेतु है – यम। तुम्हारा शरीर है; शरीर के लिए हैं नियम और आसन। फिर एक सेतु है-प्राणायाम, क्योंकि मन का आयाम शरीर से भिन्न है। फिर है मन की तैयारी : प्रत्याहार और धारणा–घर लौट आना और एकाग्र होना। फिर एक सेतु है, यह है अंतिम सेतु-ध्यान। और फिर तुम पहुंच जाते हो मंजिल तक : समाधि। समाधि बहुत सुंदर शब्द है। इसका अर्थ है. अब हर बात का समाधान हुआ। इसका अर्थ ही है समाधान : सब मिल गया। अब कोई आकांक्षा न रही; कुछ पाने को न रहा; कहीं जाने को न रहा; तुम घर आ गए।
आज इतना ही।