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मरेगा। यदि तुम सजग होते हो कि तुम्हें मरना है, तो तुम तुरंत ही जीवन के विषय में पुनर्विचार करने लगते हो। तब तुम चाहोगे कि मृत्यु जीवन में समाहित हो जाए।
जब मृत्यु समाहित हो जाती है जीवन में तो यम पैदा होता है : अनुशासन का जीवन। तब तुम जीते हो, लेकिन तुम सदा मृत्यु के स्मरण सहित जीते हो। तुम चलते हो, लेकिन तुम सदा जानते हो कि तुम बढ़ रहे हो मृत्यु की ओर। तुम आनंद मनाते हो, लेकिन तुम अच्छी तरह जानते हो कि ऐसा सदा न रहेगा। मृत्यु तुम्हारी छाया बन जाती है; तुम्हारे अस्तित्व का हिस्सा, तुम्हारे परिप्रेक्ष्य का हिस्सा बन जाती है। तुमने समाहित कर लिया मृत्यु को-अब आत्म- अनुशासन संभव होगा। अब तुम सोचोगे, 'कैसे जीएं?' क्योंकि अब जीवन ही लक्ष्य नहीं. मृत्यु भी उसका हिस्सा है। कैसे जीएं? ताकि तुम सुंदरता से जी सको और सुंदरता से मर भी सको। कैसे जीएं? ताकि न केवल जीवन आनंद का एक परम शिखर बन जाए, बल्कि मृत्यु भी उच्चतम शिखर हो जाए, क्योंकि मृत्य जीवन का परम शिखर है।
इस ढंग से जीओ कि तुम समग्रता से जीने में सक्षम हो जाओ और तुम समग्रता से मरने में भी सक्षम हो जाओ; यही आत्म- अनुशासन का कुल अर्थ है। आत्म- अनुशासन दमन नहीं है; यह है सुनिदशित जीवन; ऐसा जीवन जिसमें एक दिशा हो। यह है मृत्यु के प्रति पूर्णत: सचेत और सजग जीवन। तब तुम्हारे जीवन की नदी के दो किनारे होते हैं-जीवन और मृत्यु, और चैतन्य की नदी इन दोनों के बीच प्रवाहित होती है। जो भी जीवन के एक हिस्से मृत्यु को अस्वीकार करके जीने का प्रयास कर रहा है, वह एक ही किनारे के साथ बहने का प्रयास कर रहा है; उसके चैतन्य की नदी
समग्र नहीं हो सकती। उसमें कुछ अभाव होगा; किसी बहुत सुंदर बात को वह चूक जाएगा। उसका जीवन सतही होगा। उसमें कोई गहराई न होगी। मृत्यु के बिना कोई गहराई नहीं होती।
और यदि तुम दूसरी अति पर चले जाते हो, जैसा कि भारतीयों ने किया है-उन्होंने निरंतर रहना शुरू कर दिया है मृत्यु के साथ-वे घबडाए हुए हैं, भयभीत हैं, प्रार्थना कर रहे हैं; प्रयास में लगे हैं कि कैसे मृत्यु से बच जाएं, कैसे अमर हो जाएं तब वे बिलकुल ही जीना बंद कर देते हैं। वह बात भी एक पागलपन है। वे भी बहेंने एक ही किनारे के साथ; उनका जीवन भी एक दुखद घटना रहेगी।
पश्चिम दुखी है, पूरब दुखी है क्योंकि एक समग्र जीवन अभी तक संभव नहीं हुआ है। क्या यह संभव है कि तुम एक सुंदर काम-जीवन जीओं, मृत्यु के स्मरण सहित? क्या प्रेम करना और गहनता से प्रेम करना संभव है- भलीभांति जानते हए कि तम्हें मरना है और तुम्हारी प्रिया को मरना है? यदि यह संभव है, तो एक समग्र जीवन संभव है। तब तुम एकदम संतुलित होते हो; तब तुम संपूर्ण होते हो। तब तुम में किसी चीज की कमी नहीं होती; तब तुम तृप्त होते हो; एक गहन तृप्ति तुम्हें भर देती है। 'यम' का जीवन एक संतुलित जीवन है। पतंजलि के ये पांच व्रत तुम्हें संतुलन देने के लिए हैं। लेकिन तुम उन्हें गलत समझ सकते हो और तुम फिर एक दूसरी तरह का असंतुलित जीवन निर्मित कर